बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने हाल ही में कहा कि किसी व्यक्ति के घर में ईसा मसीह की तस्वीर होने का मतलब यह नहीं है कि उसने ईसाई धर्म अपना लिया है. जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण और जस्टिस उर्मिला जोशी फाल्के की डिविजन बेंच ने 10 अक्टूबर को 17 वर्षीय एक लड़की द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें अमरावती जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति द्वारा उसकी जाति को ‘महार’ के रूप में अमान्य करने के सितंबर 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी. पति-पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता, इलाहाबाद HC की अहम टिप्पणी.
लड़की के जाति के दावे को अमान्य करने का निर्णय तब लिया गया, जब समिति के सतर्कता प्रकोष्ठ ने जांच की और पाया कि याचिकाकर्ता के पिता और दादा ने ईसाई धर्म अपना लिया था और उनके घर में ईसा मसीह की एक तस्वीर लगी हुई पाई गई थी.
समिति ने कहा था कि चूंकि, उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है, इसलिए उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल किया गया है. याचिकाकर्ता लड़की ने दावा किया कि ईसा मसीह की तस्वीर उन्हें किसी ने उपहार में दी थी. इसलिए घर में लगी है. याचिकाकर्ता ने आगे दावा किया कि वह बौद्ध धर्म का पालन करता है. उन्होंने मांग की कि उन्हें 'महार' समुदाय के सदस्य के रूप में प्रमाणित किया जाना चाहिए, जिसे संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश के तहत अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता प्राप्त है.
विजिलेंस सेल के अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि लड़की के पिता और दादा ने ईसाई धर्म अपना लिया था. अदालत ने कहा, “कोई भी विवेकशील व्यक्ति यह स्वीकार या विश्वास नहीं करेगा कि केवल इसलिए कि घर में ईसा मसीह की तस्वीर है, जिसका वास्तव में मतलब होगा कि व्यक्ति ने ईसाई धर्म अपना लिया है.” हाईकोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि दादा, पिता या याचिकाकर्ता ने ईसाई धर्म अपना लिया था.