नयी दिल्ली, 18 मार्च: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने शनिवार को कहा कि सरकार को एक जिम्मेदार वादकारी के रूप में काम करना चाहिए, न कि बाध्यकारी मुकदमेबाज के रूप में. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने न्यायाधिकरणों से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि उनके फैसले न्याय प्रदान करने को अंतिम रूप दें.
उन्होंने सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण के 40 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में कहा कि कार्यपालिका को अपनी वाद नीति को इस तरह से लागू करना चाहिए कि यह ‘‘महज एक पत्र न रहे.’’ Supreme Court के सभी जज सातों दिन काम करते हैं, US-ऑस्ट्रेलिया से ज्यादा चलती है यहां की अदालत: CJI चंद्रचूड़
उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरणों द्वारा निर्णय लेने में स्पष्टता और निश्चयात्मकता से लंबित मामलों में कमी आएगी. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने स्पष्ट किया कि मुकदमेबाजी के प्रति सरकार के दृष्टिकोण में बदलाव से ‘‘चीजों को और बेहतर आकार लेने’’ में मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि न्यायिक निकायों पर जिम्मेदारी समान रूप से गंभीर है और न्यायाधिकरणों को इस तरह से निर्णय देने की आवश्यकता है जैसे कि वे ‘अंतिम अदालत’ और ‘अंतिम सहारा’ हों. दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने अपने संबोधन में सुझाव दिया कि न्यायाधिकरण देरी के मुद्दे को हल करने के लिए प्रौद्योगिकी का सहारा लें.
दिल्ली उच्च न्यायालय के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया.
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