बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज, 7 अगस्त को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (पति और रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के साथ क्रूरता) के दुरुपयोग पर चिंता जताई. जस्टिस एएस गडकरी और नीला गोखले की खंडपीठ ने वैवाहिक क्रूरता के पीड़ितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की और यह भी कहा कि धारा 498A का दुरुपयोग किया जा रहा है. अदालत ने कहा, "यहां तक कि दादा-दादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी ऐसे मामलों में फंसाया जा रहा है."
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि अगर आईपीसी की धारा 498A के तहत अपराध को समझौता योग्य बनाया जाए तो हजारों मामलों का समाधान किया जा सकता है. अदालत ने पत्नी और उसके पति, सास और ननद के बीच समझौते के बाद धारा 498A मामले को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.
न्यायाधीशों ने आगे कहा कि धारा 498A के तहत दर्ज हजारों मामले, जो राज्य भर की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं उनका निपटारा किया जा सकता है यदि केंद्र सरकार इस बात पर अपना रुख स्पष्ट करे कि क्या इस प्रावधान के तहत अपराधों को शमनीय बनाया जा सकता है.
हालांकि, केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील डीपी सिंह ने खंडपीठ से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए और समय मांगा. इसके बाद न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई 22 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी.
क्या है IPC की धारा 498A
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A पत्नी पर क्रूरता के अपराध से संबंधित है. इसमें कहा गया है कि पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी पर क्रूरता करना, जिससे पत्नी को शारीरिक या मानसिक पीड़ा हो, या उसे या उसके किसी रिश्तेदार को संपत्ति की अवैध मांग पूरी करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से उत्पीड़न करना, दंडनीय अपराध है. इस अपराध के लिए तीन साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है.
इस धारा के दुरुपयोग के बारे में भी देशभर की अदालतें चिंता जता चुकी हैं, और कई मामलों में अदालतों ने इस धारा के दुरुपयोग को रोकने के लिए कदम उठाए हैं.