Dr. Rajendra Prasad Punya Tithi 2022: देश के पहले राष्ट्रपति जिनका जीवन एक संत की तरह सादगी भरा था, जानें उनके जीवन के कुछ रोचक अंश!
Rajendra Prasad

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जहां अपने शाही जीवन शैली के लिए मशहूर थे, वहीं देश के प्रथम राष्ट्रपति स्व. डॉ राजेंद्र प्रसाद जो ‘राजेंद्र बाबू’ के नाम से भी जाने जाते थे, उनकी जीवन शैली पंडित नेहरू की जीवन शैली के विपरीत सादगी भरी थी. बतौर राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू ने दो कार्यकाल (1952-62) गुजारने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था. राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन में भी उनकी सादगी भरे जीवन के तमाम किस्से मशहूर हैं. राजेंद्र बाबू की 59 वीं पुण्य-तिथि पर आइये जानें उनके जीवन के कुछ रोचक अंश…

राजेंद्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर 1884 को सिवान के जीरादेई गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता महादेव सहाय तथा माँ का नाम कमलेश्वरी देवी था. वे शुरु से मेधावी छात्र थे. 1902 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और 1905 में प्रथम श्रेणी में स्नातक पास किया. 1907 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद, बिहार के एक कॉलेज में बतौर अंग्रेजी प्रोफेसर जुड़े. 1909 में नौकरी छोड़कर लॉ की डिग्री के लिए कलकत्ता चले गए. मास्टर्स इन-लॉ हासिल करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लॉ में डॉक्टरेट की डिग्री ली. 1916 में पटना उच्च न्यायालय से जुड़े. साल 1917 में गांधीजी द्वारा बिहार में ब्रिटिश नील बागान के मालिकों द्वारा शोषित किसानों के लिए राजेंद्र बाबू को अपने अभियान से जोड़ा. गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद 1920 में वे कानूनी प्रैक्टिस छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. यह भी पढ़ें : Shani Dev Puja 2022: रंक से राजा बनाने वाले शनिदेव की मूर्ति घर पर क्यों नहीं रखते? जानें कैसे करें शनिदेव की पूजा!

वेतन में कटौती के साथ अतिरिक्त भत्ता बंद करवाया!

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की राजनीतिक चेतना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन शैली से प्रभावित थी. उन दिनों राष्ट्रपति का वेतन मासिक 10 हजार रूपये, तथा मासिक भत्ता 2 हजार रूपये मिलते थे, जो राष्ट्रपति भवन में आनेवाले अतिथियों पर खर्च करने के होते थे. राजेंद्र बाबू ने कुछ माह बाद भत्ता बंद करवा दिया. इसके बाद वेतन में भी कटौती करते हुए पहले 6 हजार, फिर 5 हजार और बाद में ढाई हजार रूपये करवा दिया था. उनका कहना था कि वह एक निर्धन देश के राष्ट्रपति हैं, इसलिए हमें फिजूलखर्जी से बचना चाहिए. यह भी पढ़ें : Shani Dev Puja 2022: रंक से राजा बनाने वाले शनिदेव की मूर्ति घर पर क्यों नहीं रखते? जानें कैसे करें शनिदेव की पूजा!

उनकी सादगी की विरोधी भी प्रशंसा करते थे.

देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बावजूद राजेंद्र बापू अपने सारे कार्य स्वयं करते थे. राष्ट्रपति भवन में जहां उनके लिए तमाम नौकर नियुक्त किये गये थे, उन्होंने सबको हटाकर केवल एक पर्सनल कर्मचारी अपने पास रखा. उन्हें तोहफे लेना भी पसंद नहीं था. राष्ट्रपति भवन में अगर कोई उनके लिए तोहफे लाता तो वे उसे वापस करके कहते थे कि बस आपके आशीर्वाद और दुआओं की जरूरत है. उनकी इस विनम्रता से उनके उनके विरोधी भी उनकी प्रसंसा किये बिना नहीं रहते थे.

भारत-रत्न से सम्मानित किया गया

साल 1962 में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. राजेंद्र बाबू ने अपने जीवन का आखिर समय पटना के सदाकत आश्रम में गुजारा. 1962 में ही पत्नी के निधन के बाद बाबू राजेंद्र प्रसाद एकदम टूट से गये थे, 28 फरवरी 1963 के दिन उनका भी निधन हो गया. देश आज भी उन्हें स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान शिक्षाविद, ईमानदार, एक संत राष्ट्रपति के साथ-साथ एक सरल एवं सादगी पसंद व्यक्ति के रूप में याद करता है.