Dr. Rajendra Prasad 136th Birth Anniversary: भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) का नाम आते ही तीन चीजें जहन में आती हैं- राष्ट्रभक्ति, कुशल बुद्धि और काम के प्रति निष्ठा. जी हां हमारे प्रथम राष्ट्रपति अपनी इन तीन बातों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध थे. बेहद साधारण स्वभाव वाले राजेंद्र प्रसाद को लोग प्रेम से राजेंद्र बाबू बुलाते थे. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी की आज 136वीं जयंती है. उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपने छात्रों को ज्ञान देने के साथ-साथ सही राह दिखाने का काम किया. एक लेखक के रूप में जन-जन को जागरूक किया, एक वकील के रूप में न्याय के लिए कई सारी जंग लड़ीं, एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भारत मां के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया.
राजेंद्र बाबू के जीवन से जुड़ी प्रेरक घटनाएं- बचपन से ही उनमें कई सारी भाषाएं सीखने की ललक थी. इसे देखते हुए उनके पिता ने एक मौलवी साहब को नियुक्त किया, जो उन्हें गणित के साथ-साथ फार्सी और हिन्दी भाषा पढ़ाते थे. जब वे कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज (जो अब विश्वविद्यालय है) में पढ़ते थे, परीक्षा देते वक्त उन्होंने अपने पेपर पर एक वाक्य लिखा, जिसे पढ़ कर टीचर भी मुस्कुरा उठे. राजेंद्र प्रसाद से जुड़ी खास बातें-
• डॉ. प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के जीरादेई में हुआ था.
• उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला विद्यालय से पूरी की.
• 1896 में मात्र 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह राजवंशी देवी के साथ हुआ.
• पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बिहार के एक कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर बने, उसके बाद विधि की पढ़ाई की.
• विधि की पढ़ाई करते वक्त वे कोलकाता के एक कॉलेज में पढ़ाते थे.
• उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की.
• स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए.
• वे महात्मा गांधी से बहुत अधिक प्रेरित थे.
• नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे जेल गए.
• भारतीय संविधान के निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
• वे 1950 से 1962 तक भारत के राष्ट्रपति पद पर रहे.
• 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्म से नवाज़ा गया.
• 28 फरवरी 1963 को 78 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.
उन्होंने लिखा था, "परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर होता है". 25 जनवरी 1950 को जब भाारतीय गणराज्य की स्थापना का आयोजन चल रहा था, उसी दिन उनकी बहन का निधन हो गया. राजेंद्र बाबू ने पहले प्रथम गणतंत्र दिवस की प्रक्रिया को पूरा किया और उसके बाद अपनी बहन के अंतिम संस्कार में गए. 1914 में पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ आने पर वे स्वयं बाढ़ पीड़ितों की सहायता करने निकल पड़े.
कई महीनों तक वे अपने घर से बाहर पीड़ितों की सेवा में लगे रहे. यही नहीं 1934 में बिहार में भूकम्प के दौरान भी उन्होंने गरीबों की सहायता की. राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपने जीवन के कुछ महीने पटना में सदाकत आश्रम में बिताये.