नई दिल्ली, 28 सितम्बर : राजधानी दिल्ली में पिछले साल दंगों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा है कि पिछले साल के दंगे अचानक नहीं हुए, बल्कि यह देश में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए एक 'पूर्व नियोजित' साजिश थी. तीन दिन चली हिंसा में 50 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए थे. उच्च न्यायालय ने मो. इब्राहिम द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं. दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की कथित हत्या से जुड़े एक मामले में इब्राहिम को गिरफ्तार किया गया था. उच्च न्यायालय ने इस मामले में आरोपी को जमानत देने से, यह कहते हुए इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता को तलवार दिखाते हुए उपलब्ध वीडियो फुटेज 'काफी गंभीर' था और उसे हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त था. इब्राहिम को दिसंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह न्यायिक हिरासत में है.
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि घटना स्थल के पास के इलाकों में सीसीटीवी कैमरों को व्यवस्थित रूप से हटा और नष्ट कर दिया गया. अदालत ने फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी को हिला देने वाले दंगों पर ध्यान दिया, जाहिर तौर पर यह एक पल में नहीं हुआ था, बल्कि यह एक साजिश थी, जिसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था. अदालत ने कहा, "असंख्य दंगाइयों ने बेरहमी से पुलिस अधिकारियों के एक निराशाजनक दल पर लाठी, डंडा आदि का इस्तेमाल किया." अदालत ने प्रदर्शनकारियों के आचरण को नोट किया, जो अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड किए गए वीडियो फुटेज में मौजूद थे. यह साफ दर्शाता है कि यह सरकार के कामकाज को अव्यवस्थित करने और लोगों के सामान्य जीवन को बाधित करने का एक सुनियोजित प्रयास था. यह भी पढ़ें : Haryana: कोविड की जटिलताओं के बाद अनिल विज एम्स में भर्ती
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किये गये वीडियो फुटेज में, प्रदर्शनकारियों के आचरण से यह स्पष्ट था कि दंगे सामान्य जीवन और सरकार के कामकाज को बाधित करने के लिए एक सुनियोजित प्रयास थे. एक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करते हुए, अदालत ने साफ किया कि "व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता है कि इसे अस्थिर करने और अन्य व्यक्तियों को चोट पहुंचाने का प्रयास करके सभ्य समाज के ताने-बाने को खतरा हो." न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा, "सीसीटीवी कैमरों को व्यवस्थित रूप से हटाना और नष्ट करना भी शहर में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए एक पूर्व नियोजित साजिश के अस्तित्व की पुष्टि करता है." फिहलाल, एक अलग आदेश में, अदालत ने एक सलीम खान को जमानत दे दी, क्योंकि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि वह अपराध स्थल पर गैरकानूनी सभा का हिस्सा था.