नई दिल्ली, 16 मार्च: क्लाउडएसईके के साइबर-सुरक्षा शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि एक रूसी हैकर ग्रुप ने भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) की वेबसाइट को निशाना बनाया और इसके स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) में छेड़छाड़ की. एआई-संचालित साइबर सुरक्षा कंपनी का दावा है कि रूस समर्थक हैकर ग्रुप फीनिक्स ने कथित तौर पर एचएमआईएस पोर्टल से छेड़छाड़ की और देश के सभी अस्पतालों के कर्मचारियों और मुख्य चिकित्सकों के डेटा तक पहुंच बनाई. यह भी पढ़ें: Russian Jet collides With US Drone: काला सागर के ऊपर अमेरिकी ड्रोन से रूसी जेट टकराया, दोनों देशों के बीच तना-तनी बढ़ी
क्लाउडएसईके के प्रासंगिक एआई डिजिटल रिस्क प्लेटफॉर्म एक्सविगिल के अनुसार, "इस लक्ष्य के पीछे का मकसद रूसी संघ के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध थे जहां भारतीय अधिकारियों ने प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं करने का फैसला किया और रूसी तेल के लिए अनुमोदित मूल्य सीमा का अनुपालन करने का फैसला किया." "इस फैसले के परिणामस्वरूप रूसी हैकटीविस्ट फीनिक्स के टेलीग्राम चैनल पर कई पोल हुए, जिसमें फॉलोअर्स से उनके वोट मांगे गए."
सुरक्षा शोधकर्ताओं के अनुसार, रूसी खतरे वाले ठग साइबर अपराध मंचों पर एक्सफिल्टर्ड लाइसेंस दस्तावेज और व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी (पीआईआई) बेच सकते हैं और पीआईआई और लाइसेंस दस्तावेजों का उपयोग कर दस्तावेज धोखाधड़ी कर सकते हैं. जनवरी 2022 से सक्रिय, रूसी हैकटीविस्ट समूह फीनिक्स को फिशिंग घोटाले में पीड़ितों को लुभाने के लिए सोशल इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करते हुए देखा गया था और उसके बाद पासवर्ड चुराकर अपने पीड़ितों के बैंक या ई-पेमेंट खातों तक पहुंच प्राप्त की. फीनिक्स हार्डवेयर हैकिंग, खोए हुए या चोरी हुए आईफोन को अनलॉक करने और उन्हें नियंत्रित आउटलेट्स के नेटवर्क के माध्यम से कीव और खारकिव में फिर से बिक्री करने में भी लगा हुआ है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि रूसी हैक्टिविस्ट ग्रुप ने पहले अमेरिकी सेना की सेवा करने वाले एक अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा संगठन के साथ जापान और ब्रिटेन में स्थित अस्पतालों पर हमला किया था. पिछले साल के अंत में, दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) बड़े पैमाने पर रैंसमवेयर हमले का शिकार हुआ था, जिसमें चीन का हाथ बताया जा रहा है. हैकिंग में संभावित रूप से राजनीतिक नेताओं और अन्य वीआईपी सहित कम से कम 40 मिलियन रोगियों के संवेदनशील डेटा से समझौता किया गया था.