बेंगलुरु: भारत के दूसरे चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-2’ (Chandrayaan-2) से संबंधित एक अति महत्वपूर्ण घटनाक्रम में सोमवार को इसके ‘विक्रम’ लैंडर को ऑर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया. अब चांद के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में लैंडर के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने और अंतरिक्ष इतिहास में नया अध्याय दर्ज करने में महज पांच दिन बचे हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 978 करोड़ रुपये की लागत वाले महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन की एक और सफलता की घोषणा करते हुए कहा कि ‘लैंडर’ को ‘ऑर्बिटर’ से अलग करने की प्रक्रिया आज अपराह्न एक बजकर पंद्रह मिनट पर पूरी कर ली गई. इसरो के बेंगलुरु स्थित मुख्यालय के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा से कहा कि लैंडर’ को ‘ऑर्बिटर’ से अलग करने की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की गई. इसने कहा कि चंद्रयान-2 के ‘लैंडर’ और ‘ऑर्बिटर’ की सभी प्रणालियां एकदम ठीक हैं।इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने पिछले महीने कहा था कि ‘ऑर्बिटर’ का ‘लैंडर’ से अलग होना ‘‘दुल्हन का पिता का घर छोड़ने’’ जैसा होगा.
‘विक्रम’ सात सितंबर को रात एक बजकर 55 मिनट पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के जरिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा. ‘चंद्रयान-2’ मिशन की इस सबसे जटिल प्रक्रिया में यदि इसरो को सफलता मिलती है तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इसके साथ ही अंतरिक्ष इतिहास में भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा. ‘लैंडर’ के चांद की सतह पर उतरने के बाद इसके भीतर से ‘प्रज्ञान’ नाम का रोवर बाहर निकलेगा और अपने छह पहियों पर चलकर चांद की सतह पर अपने वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देगा. ‘लैंडर’ का नाम भारत के अंतरिक्ष मिशन के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर ‘विक्रम’ रखा गया है. यह भी पढ़े: चंद्रयान-2: चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने पर पीएम मोदी ने इसरो को दी बधाई
रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’ संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब बुद्धि से है। क्योंकि रोवर कृत्रिम बुद्धि से लैस है, इसलिए इसका ऐसा नाम रखा गया है. बेहद महत्वपूर्ण आज की प्रक्रिया भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी-मार्क ।।।-एम 1 के जरिए 22 जुलाई को चंद्रयान-2 को प्रक्षेपित किए जाने के 42 दिन बाद की गई है। इससे पहले धरती और चांद की कक्षाओं में यान को आगे बढ़ाने की कई प्रक्रियाओं को अंजाम दिया गया। यान को चांद की कक्षा में आगे बढ़ाने की पांचवीं और अंतिम प्रक्रिया को गत रविवार को अंजाम दिया गया था.
इसरो ने सोमवार को एक बयान में कहा कि ‘आर्बिटर’ से अलग होने के बाद ‘लैंडर’ चांद से 119 किलोमीटर के निकटतम बिन्दु और 127 किलोमीटर के दूरस्थ बिन्दु पर स्थापित हो गया।वहीं, ‘ऑर्बिटर’ चांद की मौजूदा कक्षा में लगातार चक्कर लगा रहा है। इसका मिशन काल एक साल का है.इसरो ने कहा कि चंद्रयान-2 के ‘ऑर्बिटर’ और ‘लैंडर’ की सभी प्रणालियां ठीक हैं। यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से ‘ऑर्बिटर’ और ‘लैंडर’ की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है. इस काम में ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद ली जा रही है।अब तीन और चार सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की तैयारी के लिए ‘लैंडर’ को चांद की सतह की तरफ नीचे लाने और कक्षा से बाहर निकालने के लिए दो प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जाएगा.
इसरो ने कहा कि इस तरह की पहली प्रक्रिया को भारतीय समयानुसार मंगलवार को सुबह पौने नौ बजे और पौने दस बजे के बीच अंजाम दिया जाएगा।‘लैंडर’ दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में किस जगह पर उतरेगा, इसका फैसला संबंधित क्षेत्र की तस्वीरों का अध्ययन करने और यह सुनिश्चित करने के बाद किया जाएगा कि संबंधित स्थल पर किसी तरह का कोई खतरा तो नहीं है. छह पहिए वाला रोवर ‘प्रज्ञान’ चांद की मिट्टी के कई तरह के परीक्षण करेगा, खासकर पानी और खनिजों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए.
रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिन यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर होगा। सिवन ने पूर्व में कहा था कि चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का समय ‘दिलों की धड़कन को थामने वाला होगा’’ क्योंकि यह प्रक्रिया कुछ ऐसी है जो भारत ने पहले कभी नहीं की है। चंद्रयान-2 के ‘ऑर्बिटर’ में आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चंद्र सतह का मानचित्रण करेंगे और चंद्रमा के बाह्य परिमंडल का अध्ययन करेंगे। ‘लैंडर’ के साथ तीन उपकरण हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। वहीं, ‘रोवर’ के साथ दो उपकरण हैं जो चंद्र सतह की समझ में मजबूती प्रदान करने का काम करेंगे.