बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि अगर किसी पुरुष ने शादी का सच्चा वादा करके महिला के साथ संबंध बनाए और बाद में माता-पिता की असहमति के कारण उस वादे से मुकर जाए, तो यह बलात्कार नहीं माना जाएगा.
न्यायमूर्ति एम.डब्ल्यू. चंदवानी ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी अपने साथी से शादी करने के लिए तैयार था, लेकिन बाद में माता-पिता के विरोध के कारण उसने अपने वादे से मुकर गया. उन्होंने कहा, "केवल इसलिए कि उसने माता-पिता की असहमति के कारण शादी करने के अपने वादे से मुकर गया, यह नहीं कहा जा सकता कि उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (बलात्कार) के तहत दंडनीय अपराध किया है." HC On Married Woman-Rape and Marriage Promise: शादीशुदा महिला शादी के झूठे वादे पर रेप का मुकदमा नहीं चला सकती, हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत का मानना है कि भले ही आरोपी के खिलाफ आरोपों को सच माना जाए, लेकिन ऐसा नहीं है कि उसने शादी का "झूठा" वादा किया था. अदालत ने कहा, "अधिक से अधिक, यह परिस्थितियों के कारण वादे को पूरा करने या तोड़ने का मामला है, जिसका आरोपी पूर्वाभास नहीं कर सकता था या उसके नियंत्रण से बाहर था क्योंकि वह हर इरादे के बावजूद पीड़िता से शादी करने में असमर्थ था."
पहले लड़की खुद शादी नहीं करना चाहती थी
अदालत ने यह भी देखा कि व्हाट्सएप चैट से पता चलता है कि पीड़िता पहले आरोपी लड़के से शादी नहीं करना चाहती थी, जबकि आरोपी उससे शादी करने के लिए तैयार था. अदालत ने टिप्पणी की, "यह पीड़िता ही है जिसने इनकार किया और आरोपी को सूचित किया कि वह किसी अन्य लड़के से शादी करेगी. जब आरोपी लड़के की सगाई किसी अन्य लड़की से हुई, तब ही पीड़िता ने शिकायत दर्ज कराई."
शिकायतकर्ता महिला और आरोपी 2019 में जब रिश्ते में थे, तब शारीरिक संबंध बनाए थे. बाद में, शिकायतकर्ता को पता चला कि वह लड़का दूसरी महिला से सगाई कर रहा है और उससे शादी कर लेगा. तब शिकायतकर्ता ने नागपुर के पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. जब आरोपी को बुलाया गया, तो उसने पुलिस को बताया कि वह शिकायतकर्ता से शादी करने के लिए तैयार है, लेकिन उसके माता-पिता शादी के लिए सहमत नहीं हैं.
शिकायतकर्ता महिला भी उस आदमी के पिता से मिलने गई, जिसने कहा कि वह अपने बेटे की शादी शिकायतकर्ता से नहीं करना चाहता. इसके बाद, नागपुर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ रेप केस के तहत प्राथमिकी दर्ज की.
आखिरकार, आरोप पत्र दाखिल होने के बाद आरोपी ने खुद को मामले से मुक्त करने के लिए सेशन कोर्ट का रुख किया. हालांकि, सेशन कोर्ट ने आरोपी को मुक्त करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उसे राहत के लिए हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा.
हाईकोर्ट ने आरोप पत्र से पाया कि जोड़े ने कई मौकों पर शारीरिक संबंध बनाए थे और शादी का वादा ही ऐसे संबंधों का एकमात्र कारण नहीं था.
न्यायाधीश ने आगे कहा, "वह (शिकायतकर्ता) यौन संबंधों के प्रभाव के बारे में पूरी तरह से सचेत थी और लगातार काफी समय तक रिश्ते को आगे बढ़ाया. इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि हर बार केवल शादी के वादे पर ही यौन संबंध स्थापित किए गए थे. वादे को तोड़ने और झूठा वादा पूरा न करने में अंतर है."