Bombay High Court On Divorce: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा "फैमिली कोर्ट यह मानते हुए तलाक की डिक्री पारित नहीं कर सकती है कि पार्टियों के दिल और दिमाग में शादी भंग हो गई है, जब पार्टियों ने कोई सबूत नहीं दिया है या एक-दूसरे के खिलाफ अपने आरोपों को वापस नहीं लिया है.
न्यायमूर्ति आरडी धानुका और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने पारिवारिक अदालत द्वारा पारित तलाक के आदेश को खारिज करते हुए कहा - "फैमिली कोर्ट ने सीपीसी की धारा 151 के विपरीत तलाक की डिक्री पारित की है, यह मानते हुए कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी अलग होने का इरादा रखते हैं क्योंकि उनके दिमाग और दिल में विवाह भंग हो गया है. किसी भी पक्ष ने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं. विद्वान कुटुम्ब न्यायालय अनुमान नहीं लगा सकता था और इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता था कि तलाक की डिक्री पारित करते समय विवाह उनके मन और हृदय में विलीन हो गया था."
Family Court Cannot Grant Divorce Without A Trial Assuming Marriage Is Dissolved In Parties’ Hearts And Minds: Bombay High Court @AmishaShriv #BombayHighCourt #marriage #Divorce https://t.co/br7l31zFBL
— Live Law (@LiveLawIndia) April 14, 2023
अपीलकर्ता-पत्नी ने क्रूरता के आधार पर नवंबर 2017 में तलाक की याचिका दायर की और प्रतिवादी-पति से अपने और अपने बेटे के लिए रखरखाव की मांग की. पति ने आरोपों से इनकार किया और याचिका का विरोध किया. 2021 में पति ने दाखिले पर तलाक मांगा, जिसका पत्नी ने विरोध किया.
फैमिली कोर्ट ने फरवरी 2022 में तलाक की डिक्री दे दी, लेकिन भरण-पोषण और स्थायी गुजारा भत्ता की प्रार्थना को लंबित रखा. इसलिए, पत्नी ने वर्तमान परिवार न्यायालय अपील दायर की.