नई दिल्ली, 30 जुलाई: कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को कहा कि मणिपुर मसले को लेकर राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारें ठोस कदम नहीं उठा रही हैं उन्होंने कहा कि दोनों सरकारों ने इस मामले पर अपनी आंखें 'मूंद ली हैं' विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के 21 सदस्यीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्य के दो दिवसीय दौरे से रविवार को लौटने के बाद चौधरी ने यहां संवाददाताओं से कहा, “चाहे वह राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, वे (मणिपुर मुद्दे पर) ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं. यह भी पढ़े: Uniform Civil Code: कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी बोले, 'BJP चाहें तो संसद में कानून लाकर यूनिफॉर्म सिविल कोड ला सकती है' 'उन्हें किसने रोका'?
किसी को कोई परेशानी नहीं है जहां तक मणिपुर का सवाल है, दोनों सरकारों ने अपनी आंखें मूंद ली हैं उन्होंने कहा कि पूरे मणिपुर में दो समुदायों के बीच लड़ाई चल रही है और दोनों समूहों के बीच मामले को सुलझाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है कांग्रेस नेता ने कहा, “मैं सरकार को सचेत करना चाहता हूं कि अगर ऐसी स्थिति जारी रहने दी गई, तो यह हाथ से बाहर हो जाएगी क्योंकि दोनों समूह एक-दूसरे पर भरोसा खो चुके हैं.
उन्होंने पूछा कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को अब तक बर्खास्त क्यों नहीं किया गया जबकि राज्य के लोगों का उनकी सरकार पर से भरोसा उठ गया है प्रतिनिधिमंडल में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने कहा, “स्थिति खतरनाक और दर्दनाक है हम (दोनों समुदायों के बीच) संबंध बहाल करने की मांग करते हैं एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को मणिपुर का दौरा करना चाहिए.
इससे पहले दिन में, विपक्षी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने इम्फाल के राजभवन में मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाली का आग्रह किया गया ज्ञापन में लिखा था, “हम आपसे ईमानदारी से अनुरोध करते हैं कि सभी प्रभावी उपाय करके शांति और सद्भाव बहाल करें, जहां न्याय आधारशिला होनी चाहिए। शांति और सद्भाव लाने के लिए प्रभावित लोगों का पुनर्वास सबसे जरूरी है.
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल पूर्वोत्तर राज्य में मौजूदा संकट के लिए मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को दोषी ठहरा रहे हैं और उन्हें बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं मणिपुर में 3 मई को जातीय झड़पें भड़क उठीं और तब से अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है जबकि हजारों लोगों को राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है.