सार्वजनिक तौर पर अपराध न हो, तो नहीं लगेगा SC/ST एक्ट, इलाहाबाद HC ने सुनाया अहम फैसला
Allahabad High Court

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना है कि अगर अपराध सार्वजनिक जगह पर नहीं हुआ है, तो अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम यानी SC/ST एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती. जस्टिस विक्रम डी चौहान ने यह टिप्पणी करते हुए पिंटू सिंह उर्फ राणा प्रताप सिंह और दो अन्य की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया.

क्या है पूरा मामला?

बल्लिया के नगरा थाने में नवंबर 2017 में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 147, 452, 323, 504, 506 और SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत FIR दर्ज की गई थी. आरोप है कि ये लोग शिकायतकर्ता के घर में घुसे, जातिसूचक शब्द कहे और मारपीट भी की. पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी.

याचिकाकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ताओं ने एफआईआर रद्द करने और SC/ST एक्ट की धारा हटाने की मांग करते हुए याचिका दायर की. उनका कहना था कि यह इस कानून के तहत अपराध नहीं बनता.

जहां घटना हुई, वह सार्वजनिक जगह नहीं है. इसलिए SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत कोई अपराध नहीं बनता. जानबूझकर अपमानित करने या धमकाने की नियत से भी यह हरकत नहीं की गई.

कोर्ट का क्या कहना है?

सरकारी वकील ने याचिकाकर्ताओं की दलील का विरोध किया. लेकिन, अदालत ने कहा- सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए बयान और एफआईआर को देखने से पता चलता है कि जहां यह घटना हुई, वहां घर में कोई और सदस्य मौजूद नहीं था. यानी, कोर्ट ने माना कि चूंकि घटना सार्वजनिक जगह पर नहीं हुई थी, इसलिए SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता. हालांकि, कोर्ट ने बाकी धाराओं के तहत कार्यवाही पर कोई टिप्पणी नहीं की.

गौर करने वाली बातें

यह फैसला सिर्फ इलाहाबाद हाई कोर्ट का है और अभी तक सुप्रीम कोर्ट से कोई निर्णय नहीं आया है.

अगर आपके खिलाफ भी SC/ST एक्ट के तहत ऐसे ही आरोप हैं, तो पहले वकील से सलाह लें.