नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह स्पष्ट कर दिया कि अजित पवार के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) गुट को 'घड़ी' चिन्ह का उपयोग करने के दौरान एक डिस्क्लेमर जोड़ना अनिवार्य होगा. अदालत ने पहले ही इस संबंध में निर्देश जारी किए थे, लेकिन इस बार अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए यह कहा कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान भी इन निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए.
मामला क्या है?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब जुलाई पिछले साल NCP में विभाजन हो गया. पार्टी की स्थापना 1999 में शरद पवार ने की थी, जो अब दो गुटों में बंट गई है. एक गुट का नेतृत्व अजित पवार कर रहे हैं और दूसरे का नेतृत्व शरद पवार स्वयं कर रहे हैं. इस विभाजन के बाद, अजित पवार गुट भारतीय जनता पार्टी (BJP) और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल हो गया, जबकि शरद पवार गुट महा विकास अघाड़ी (MVA) के साथ बना रहा, जिसमें कांग्रेस और शिवसेना (UBT) शामिल हैं.
फरवरी 2024 में, चुनाव आयोग ने अजित पवार के गुट को 'वास्तविक NCP' के रूप में मान्यता दी और उन्हें मूल 'घड़ी' का चुनावी चिन्ह भी दिया. शरद पवार गुट ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, और यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है.
गुरुवार की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने अजित पवार गुट को निर्देश दिया कि वे एक ताज़ा अंडरटेकिंग दाखिल करें, जिसमें यह स्पष्ट हो कि वे अदालत के मार्च 19 और अप्रैल 4 के निर्देशों का पालन करेंगे. इन निर्देशों के तहत, अजित पवार गुट को प्रमुख अंग्रेजी, मराठी, और हिंदी अखबारों में यह सार्वजनिक सूचना देनी होगी कि 'घड़ी' का चिन्ह सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "आप यह सुनिश्चित करें कि चुनाव के अंत तक हमारे निर्देशों का उल्लंघन न हो. यदि हमें यह लगता है कि हमारे आदेश का जानबूझकर उल्लंघन किया जा रहा है, तो हम स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कार्रवाई कर सकते हैं."