फिल्म: मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर (Mere Pyare Prime Minister)
निर्देशक: राकेश ओमप्रकश मेहरा (Rakeysh Omprakash Mehra)
कास्ट: अंजलि पाटिल (Anjali Patil) , ओम कनोजिया (Om Kanojiya), मकरंद देशपांडे (Makrand Deshpande) और अतुल कुलकर्णी (Atul Kulkarni)
रेटिंग्स: 4 स्टार्स
कहानी: 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर' कहानी है मुंबई के झुग्गियों में रहनेवाले एक ऐसे बच्चे की जो अपने इलाके में शौच की सुविधा न होने के कारण परेशान है. जिस तरह से उनके इलाके में शौचालय न होने के कारण लोगों को खासतौर पर महिलाओं को शौच जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, ये बात उस बच्चे के मन को काफी हद तक प्रभावित करती है. एक दिन शौच से लौटते समय उस बच्चे की मां के साथ बलात्कार होता है जिसका असर न सिर्फ उस मां पर बल्कि उस बच्चे के दिल पर भी पड़ता है. बचपने और मासूमियत से भरा वो बच्चा अपने इलाके में शौचालय बनवाने की जिद्द पकड़ बैठता है. इसके लिए वो कई कोशिशें करता है ताकि अंत में वो अपनी मां को खुश देख सके. वो बच्चा इस सपने को पूरा करने के लिए नगरपालिका ऑफिस जाता है जहां उससे कहा जाता है कि उसे अपनी बात पत्र द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय में पहुंचना चाहिए. फिर क्या, वो बच्चा निकल पड़ता है इस सफर पर और पीएमओ में जाकर किसी तरह से अपनी अर्जी देता है.
इस फिल्म में बाल कलाकार ओम कनोजिया ने उस बच्चे (कान्हू) का किरदार निभाया है. बच्चे की मां का किरदार अभिनेत्री अंजलि पाटिल ने निभाया. इसके अलावा अतुल कुलकर्णी फिल्म में प्रधानमंत्री कार्यालय में अफसर की भूमिका में हैं. इसी के साथ मकरंद देशपांडे स्थानीय रहिवासी की भूमिका में हैं.
म्यूजिक: इस फिल्म का म्यूजिक बेहद खूबसूरत है. अपने शानदार म्यूजिक के लिए जाने-जाने वाले शंकर-एहसान-लॉय (Shankar Ehsaan Loy) की तिकड़ी ने इस फिल्म में भी म्यूजिक पर बढ़िया काम किया है. फिल्म का टाइटल सॉन्ग और होली सॉन्ग वाकई मनोरंजक है.
अभिनय: इस फिल्म में बाल कलाकारों का काम आपको सबसे ज्यादा पसंद आएगा. किस तरह से वो अपने डायलॉग्स कहते हैं और साथ ही उनके एक्सप्रेशन्स काबिल-ए-तारीफ है. मां का किरदार निभा रहीं अंजलि पाटिल का काम भी काफी बढ़िया है. जिस तरह से वो अपने किरदार में ढली हुईं नजर आईं, ये आपको इम्प्रेस जरूर करेगा. इसी के साथ फिल्म में मकरंद देशपांडे भी अपने भूमिका के साथ न्याय करते दिखे. उनकी एक्टिंग आपको काफी हद तक रियल लगेगी.
फाइनल टेक: ये फिल्म मनोरंजन से ज्यादा हमें एक अहम संदेश देती है. समाज के कई तबकें के लोगों को आज भी शौचालय की सुविधा नसीब नहीं. शौचालय के लिए महिलाओं को भी बाहर जाना पड़ता है. यौन उत्पीड़न के कई मामले ऐसे देखने को मिले हैं जहां घटना महिलाओं के साथ तब होता है जब वो शौच के लिए आ-जा रही होती हैं. ये फिल्म समाज के इसी कड़वे सच को बेहद सटीक ढंग से पेश करती है. अपनी फिल्मों से दर्शकों के दिलों को छू लेने वाले राकेश ओमप्रकाश मेहरा का जादू इस फिल्म में भी बरकार है. सामाजिक मुद्दे पर प्रकाश डालती इस फिल्म की कहानी को उन्होंने प्रभावशाली रूप से पेश किया. फिल्म में कहीं भी आपको इसकी कहानी या एक्टिंग बनावटी नहीं लगेगी और इसके मेकर्स ने समाज की असलियत को सामने रखा है. फिल्म की कहानी और इसके किरदार आपको बेहद कहीं भी बोर नहीं करते और आप इस फिल्म से काफी हद तक जुड़ पाएंगे. ये फिल्म एक टिपिकल मसाला बॉलीवुड फिल्म से ऊपर उठकर रियल सिनेमा को पेश करती है. हमारी सलाह यही होगी कि आपको ये भी ये फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए.