
Raid 2 Review: सात साल पहले लखनऊ में पड़े छापे की गूंज अभी भी ताज़ा है और अब उसी ईमानदार इनकम टैक्स अधिकारी अमय पटनायक (अजय देवगन) की वापसी हो चुकी है एक नई रेड के साथ. इस बार निशाने पर हैं 'दादा भाई' उर्फ मनोहर भाई (रितेश देशमुख)—एक बेहद पावरफुल नेता जिनकी छवि लोगों के बीच किसी भगवान जैसी है. अब यह फिल्म करती हैं एटरटेन या बस एक और सीक्वल जानेंगे इस रिव्यू में.
फिल्म की शुरुआत होती है अमय पटनायक के ट्रांसफर से राजस्थान से भोज. ट्रांसफर के पीछे राजनीति है, पर अमय किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करता. वो सीधे दादा भाई के पीछे पड़ जाता है, जिन्होंने अपनी मां के नाम पर फाउंडेशन खोला है और आम जनता की मदद कर जननायक बन बैठे हैं. लेकिन सच्चाई कुछ और ही है, और अमय इसी सच्चाई को बेनकाब करने की जद्दोजहद में लग जाते हैं.
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दादा भाई का अतीत दिलचस्प है—कभी एक आम इंसान थे जिनकी मुख्यमंत्री ने बेजती की थी, और बाद में वही व्यक्ति सत्ता में आकर होम मिनिस्टर बनता है. इस तरह की बैकस्टोरी फिल्म को गहराई देती है. अमय जब रेड डालते हैं, तो कुछ भी हाथ नहीं लगता और उन्हें सस्पेंड कर दिया जाता है. इसके बाद शुरू होती है एक इंटेंस लड़ाई—सिस्टम से, सत्ता से और खुद से.
अजय देवगन एक बार फिर अमय पटनायक के किरदार में जमे हैं. उनके चेहरे पर वही दृढ़ता और आवाज़ में वही सख़्ती जो इस किरदार की पहचान है. लेकिन असली सरप्राइज हैं रितेश देशमुख, जिन्होंने अपने अब तक के करियर में शायद सबसे गंभीर और प्रभावशाली परफॉर्मेंस दी है. उनका विलेन वाला परसोना दिलचस्प और डराने वाला है.
फिल्म में अमित सियाल की परफॉर्मेंस एनर्जी और इन्टेंसिटी से भरपूर है. सौरभ शुक्ला का कैमियो छोटा है लेकिन जैसे ही स्क्रीन पर आते हैं, हंसी और चुटीले डायलॉग्स से माहौल हल्का कर देते हैं. वाणी कपूर को अजय देवगन की पत्नी के रूप में थोड़ा और स्पेस मिल सकता था, क्योंकि उन्हें एक अहम जिम्मेदारी सौंपी जाती है जिसे जल्दी में दिखाया गया.
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, लेकिन BGM उतना प्रभावशाली नहीं रहा जितना होना चाहिए था. डायलॉग्स कहीं-कहीं काफी स्ट्रॉन्ग हैं जैसे—"तुम में चाटने की कला बहुत है, चाटो" (सौरभ शुक्ला) और "यह राम का देश है, यहां न रावण बचता है न दुशासन" (अजय देवगन). हालांकि अजय और रितेश के बीच बार-बार फोन पर डायलॉगबाज़ी थोड़ी अनरियल लगती है.
राजकुमार गुप्ता का निर्देशन असरदार है, लेकिन कहानी में बहुत ज़्यादा ट्विस्ट्स या सस्पेंस नहीं है. सेकंड हाफ थोड़ा लंबा लगता है और कहानी कुछ हद तक प्रेडिक्टेबल हो जाती है. फिर भी फिल्म की टोन गंभीर है और यह आज के समय की राजनीति और भ्रष्टाचार पर एक मज़बूत टिप्पणी करती है.
‘रेड 2’ एक एंटरटेनिंग और थॉट-प्रोवोकिंग फिल्म है जो सिस्टम के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देती है. फिल्म में दमदार परफॉर्मेंस, कुछ यादगार डायलॉग्स और एक मज़बूत सामाजिक संदेश है. यदि आप क्राइम-ड्रामा और सोशल जस्टिस से जुड़ी फिल्में पसंद करते हैं, तो यह फिल्म एक बार ज़रूर देखी जानी चाहिए. मेरी तरफ से फिल्म को 3.5 स्टार्स आउट ऑफ 5.