Bappi Lahiri Passes Away: अलविदा बप्पी लाहिड़ी- संगीत की दुनिया के ऐसे रॉकस्टार जिनके पॉप गानों पर झूमती है दुनिया
बप्पी लाहिड़ी (Photo Credits: Instagram)

Bappi Lahiri Passes Away: हिंदी फिल्मों में संगीत का वर्चस्व प्रारंभिक काल से रहा है., हांलाकि समय-समय पर इसमें परिवर्तन भी देखने को मिले, लेकिन संगीत और गायकी को जो मोड़ बप्पी लाहिड़ी ने दिया, उसका कोई सानी नहीं. सही मायनों में हिंदी सिनेमा में रॉक स्टार की शुरुआत बप्पी लाहिड़ी ने ही की. लोग उन्हें प्यार से बप्पी दा कहते थे, लेकिन आज इस रॉक स्टार की आवाज और अंदाज हमेशा के लिए खो गई है. कोरोना संक्रमण ने एक और फिल्मी हस्ती को हमसे छीन लिया.

बप्पी लहरी ने जब हिंदी सिनेमा में प्रवेश किया था, तब एक अलग किस्म की मैलोडी का प्रचलन हुआ करता था. लेकिन बप्पी दा ने मुंबई आगमन के साथ ही जब इस मैलोडी में पॉप का तड़का लगाया तो युवा वर्ग झूम उठा था. बहुत कम समय में बप्पी युवाओं के स्टार गायक बन गये. एक समय ऐसा भी आया जब बप्पी लाहिड़ी का नाम आते ही लोगों की जेहन में बंबई से आया मेरा दोस्त दोस्त को सलाम करो का झूमता नाचता चेहरा सामने आ जाता था. बप्पी ने संगीत में बदलाव लाते हुए एक नया वर्ग तैयार किया था.

कलकत्ता में हुआ था जन्म

 

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बप्पी लाहिड़ी का जन्म 27 नवंबर 1952 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था. वह एक धनाढ्य एवं संगीत घराने से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता अपरेश लाहिड़ी एक प्रसिद्ध बंगला गायक थे, और माता बांसरी लाहिड़ी भी बांग्ला संगीतकार थीं, कहने की आवश्यकता नहीं कि बप्पी दा को संगीत विरासत में मिली थी. वे माता-पिता के अकेले संतान थे. बप्पी जब मात्र तीन वर्ष के थे उन्होंने निपुणता से तबला बजाना सीख लिया था, माता पिता ने उनके संगीत को निखार देने के लिए उन्हे गुरु के पास भेजना शुरु कर दिया था, लेकिन बप्पी दा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने वास्तव में गायकी और संगीत के गुर माता-पिता से ही सीखा था. उनका रिश्ता सुप्रसिद्ध गायक किशोर कुमार और सुबोध मुखर्जी से था, मगर उन्होंने कभी भी इनका सहारा लेने की कोशिश नहीं की. जब वे 19 वर्ष के थे, उन्हें एक बंगाली फिल्म दादू में पहला गाना रिकॉर्ड करवाया. इस सफलता से प्रेरित होकर वे मुंबई आ गये.

आसान नहीं रहा मुंबई में मुकाम पाना

गीत-संगीत में अपना मुकाम बनाने बप्पी दा 1972 में बंबई (अब मुंबई) आ गये. साल 1973 में एक हिन्दी फिल्म ‘नन्हा शिकारी’ में गाना गाने का मौका मिला. लेकिन कुछ विशेष सफलता नहीं मिली. लंबी कोशिशों और संघर्ष के पश्चात 1975 में उन्हें फिल्म ‘जख्मी’ से मिली. इस फिल्म में उन्होंने मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे महान गायकों के साथ गाना गाया. इसके बाद बप्पी दा को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी.

ऐसे मिला रॉक स्टार का रुतबा

कहने की जरूरत नहीं कि हिंदी सिनेमा संगीत में पॉप का तड़का लगाने का सारा श्रेय बप्पी दा को ही जाता है. वस्तुतः बप्पी दा अमेरिकन रॉक स्टार एल्विस प्रेसली के जबर्दस्त फैन थे. वे उन्हीं जैसा बनना चाहते थे. एल्विस अपनी परफॉर्मेंस के दौरान हमेशा सोने के भारी चैन पहना करते थे. एल्विस को देखकर बप्पी दा ने भी सोचा कि जब वो कामयाब हो जाएंगे तो इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाएंगे. उन्होंने ना केवल गायकी में उनसे प्रेरणा ली, बल्कि अपना व्यक्तित्व भी उसी के अनुसार ढाला. उनके हिट होते पॉप गानों ने उन्हें जल्दी शिखर पर पहुंचा दिया, साथ ही उन्हें इंडिया का गोल्ड मैन भी कहा जाने लगा. बप्पी दा ने एक मुलाकात में बताया था कि उनके सोने के हर आभूषण ईश्वर का आशीर्वाद रहा है.