बच्चों और किशोरों का टीकाकरण फिलहाल रोका जाए, वयस्कों को प्राथमिकता देना ही बेहतर विकल्प
वैक्सीन | प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: PTI)

मेलबर्न, 4 जुलाई : कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रकोप को 18 महीने से झेलने के बीच, कुछ देश जिन्होंने ज्यादातर वयस्कों का टीकाकरण कर दिया है वे अब 12 से 15 साल के किशोरों का टीकाकरण शुरू कर चुके हैं. बच्चों और किशोरों को टीका लगाने के कारणों में स्कूलों को खोलने के लिए जरूरी भरोसा, गंभीर बीमारी को रोकने और “सामुदायिक प्रतिरक्षा” हासिल करने के लिए सभी उम्र के लोगों में संक्रमण के प्रसार को रोकना शामिल है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया सहित ज्यादातर देशों में सबसे ज्यादा जोखिम वाले आयु वर्गों का टीकाकरण अभी पूरा नहीं हुआ है. तो ऐसे में इस वक्त बच्चों और किशोरों को टीका लगाना कितना तर्कसंगत है?

बच्चों में कोविड-19

बच्चों और किशोरों में कोविड-19 कम गंभीर है, ज्यादातर बच्चों में संक्रमण हल्का या बिना लक्षण वाला होता है. अध्ययनों में पाया गया कि कम उम्र के बच्चों में कोरोना वायरस संक्रमण के बाद कई अंगों में सूजन होने (मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेट्री सिंड्रोम) और लंबे समय तक कोविड रहने की आशंका बहुत कम होती है. नवजात और अन्य चिकित्सा स्थितियों वाले बच्चों में गंभीर बीमारी के जोखिम ज्यादा होते हैं. लेकिन अच्छे स्तर के चिकित्सीय देखभाल के साथ ज्यादा संवेदनशील बच्चों में मरने का जोखिम कम हो जाता है. अंतर्निहित स्वास्थ्य मुद्दों वाले बच्चों में अधिक जोखिम को देखते हुए, 12 साल से ऊपर के इन बच्चों को टीका देना लाभदायक साबित हो सकता है और 16 से 18 साल के किशोरों को भी टीका लगाना उचित ठहराया जा सकता है. लेकिन बढ़ती उम्र गंभीर बीमारी के लिए बड़ा जोखिम है इसलिए अधिक उम्र के लोगों और वयस्कों को टीका लगाना प्राथमिकता होनी चाहिए. यह भी पढ़ें : Bengaluru: कर्नाटक में मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स कल से खोले जाएंगे, इन नियमों का पालन अनिवार्य

क्या कोविड-19 के टीके बच्चों के लिए सुरक्षित हैं?

फाइजर के टीके के 12 से 15 साल के बच्चों के क्लिनिकल परीक्षण में नजर आए सामान्य दुष्प्रभावों में टीक वाली जगह पर दर्द होना (86 प्रतिशत प्रतिभागियों में), थकान (66 प्रतिशत प्रतिभागियों में) और सिरदर्द (65 प्रतिशत प्रतिभागियों में) शामिल है. इनकी तीव्रता हल्की से मध्यम और कम समय के लिए थी. हालांकि, एमआरएनए टीकों (फाइजर और मॉडर्ना) के बाद अमेरिका, कनाडा और इजराइल में दो ज्यादा गंभीर स्थितियां- मायोकार्डिटिस (दिल की मांसपेशियों में सूजन) और पेरिकार्डिटिस (दिल की परत यानी पेरिकार्डियम में सूजन) देखी गईं. सबसे अधिक दर 25 साल से कम उम्र के युवकों-लड़कों में दूसरी खुराक के बाद देखी गई. 11 जून तक के अमेरिकी आंकड़ों के मुताबिक 12 से 17 साल के लड़कों में प्रति 10 लाख दूसरी खुराक के बाद 66.7 मामले थे. यह एस्ट्राजेनेका के टीके के बाद थ्रोम्बोसिस के साथ थ्रोम्बोसिटोपेनिया (टीटीएस) के अनुमानित खतरे से दोगुना है हालांकि मायोकार्डिटिस और पेरिकार्डिटिस कम गंभीर स्थितियां हैं.

स्कूलों में संक्रमण के प्रकोप का क्या हैं?

अमेरिका और कनाडा जैसे देश किशोरों का टीकाकरण कुछ हद तक इसलिए कर रहे हैं ताकि स्कूल खोले जाने को लेकर भरोसा पैदा किया जा सके क्योंकि वैश्विक महामारी के कारण स्कूलों को बंद रखने से बच्चों की सीखने की, सामाजिक रूप से घुलने-मिलने का व्यवहार और भावनात्मक विकास सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. स्कूलों में वायरस का प्रकोप होता है और हो सकता है तथा यह सामुदायिक संक्रमण के स्तर तक का हो सकता है. लेकिन वर्तमान प्रकोप में स्कूलों से जुड़ा हुआ संक्रमण बहुत कम देखा गया है. लेकिन यह समझना जरूरी है कि स्कूलों में संक्रमण के ज्यादातर मामलों के लिए वयस्क स्टाफ ही जिम्मेदार होता है. और स्कूलों से या आमतौर पर जोड़कर देखे जाने वाले ज्यादातर संक्रमण घर में होते हैं. स्कॉटलैंड के एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 का गंभीर खतरा उन लोगों में होने का जोखिम ज्यादा होता है जिनके घर में वयस्कों की संख्या ज्यादा होती है. वयस्कों, माता-पिता और स्कूल के स्टाफ का टीकाकरण बच्चों और स्कूलों में संक्रमण को रोकने में अहम है. बड़ी संख्या में वयस्कों को टीका लगाने से गंभीर बीमारी और मौत का खतरा कम होगा और इससे स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ कम होगा. यही मुख्य लक्ष्य है.