नयी दिल्ली, 21 जुलाई संसद के मानसून सत्र में लगातार दूसरे दिन शुक्रवार को भी मणिपुर हिंसा की प्रतिध्वनि सुनाई दी और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान और चर्चा कराने की मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों के भारी हंगामे के चलते लोकसभा और राज्यसभा में कोई विधायी कामकाज नहीं हो सका।
दोनों सदनों में प्रश्नकाल, शून्य काल के साथ साथ शुक्रवार को होने वाला गैर सरकार कामकाज भी हंगामे की भेंट चढ़ गया।
लोकसभा की कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद दोपहर करीब सवा बारह बजे दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई, वहीं राज्यसभा की कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद अपराह्न ढाई बजे पुन: शुरू होने के एक मिनट के भीतर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
लोकसभा में सदन के उपनेता एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर मणिपुर मुद्दे पर गंभीर नहीं होने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि इस पर सदन में चर्चा हो, लेकिन यहां कुछ ऐसे राजनीतिक दल हैं जो ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते हैं कि मणिपुर की घटना पर सदन में चर्चा न हो।’’
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी दल मणिपुर हिंसा के मामले में अपनी मांग उठाने लगे। कांग्रेस, द्रमुक और वामदलों के सदस्य नारेबाजी करने लगे। कुछ सदस्यों के हाथों में तख्तियां थी जिन पर लिखा था, ‘‘इंडिया चाहता है कि प्रधानमंत्री सदन में आएं।’’
कुछ अन्य सदस्य ‘जवाब दो, जवाब दो’ के नारे लगा रहे थे।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्षी सदस्यों से कहा कि नारे लगाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि यह चर्चा और संवाद से ही होगा।
विपक्षी दलों के सदस्यों के नारेबाजी जारी रखने के बीच बिरला ने रक्षा मंत्री को अपनी बात रखने को कहा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मणिपुर की घटना पर सरकार संसद में चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष गंभीर नहीं दिखाई पड़ता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ मणिपुर की घटना निश्चित रूप से बहुत ही गंभीर है और प्रधानमंत्री जी ने दोषियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई के लिए कहा है।’’
सदन के उपनेता ने कहा, ‘‘ हम चाहते हैं कि इस पर सदन में चर्चा हो, लेकिन यहां कुछ ऐसे राजनीतिक दल हैं जो ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते हैं कि मणिपुर की घटना पर सदन में चर्चा न हो।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि मणिपुर की घटना पर संसद में चर्चा हो। मैंने खुद सर्वदलीय बैठक में यह बात कही थी। आज फिर मैं दोहराता हूं कि हम चाहते हैं कि मणिपुर की घटना पर सदन में चर्चा होनी चाहिए।’’
सिंह ने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट रूप से यह आरोप लगाना चाहता हूं कि मणिपुर की घटना पर जितना गंभीर होना चाहिए, विपक्ष उतना गंभीर नहीं है। मणिपुर की घटना को गंभीरतापूर्वक लेते हुए चर्चा होनी चाहिए। मणिपुर की घटना को प्रतिपक्ष भी गंभीरता से ले।’’
मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने की घटना का वीडियो बुधवार को सामने आने के बाद इस घटना के खिलाफ देशभर में आक्रोश देखा गया है।
बाद में संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, ‘‘ सरकार चर्चा के लिए तैयार है। हमने बार-बार कहा है। आज राजनाथ सिंह जी ने भी कहा है।’’
उन्होंने कहा कि मणिपुर का मुद्दा संवेदनशील मुद्दा है और सभी को इसकी चिंता है। जोशी ने कहा, ‘‘हम चर्चा कराना चाहते हैं लेकिन ये लोग (विपक्ष) चर्चा नहीं करना चाहते हैं।’’
राज्यसभा में मणिपुर हिंसा, दिल्ली के सेवा मामले पर अध्यादेश के अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद सरकार द्वारा उसके स्थान पर विधेयक लाए जाने और सदन की कार्यवाही से कुछ अंशों को हटा देने के मुद्दों पर विपक्षी सदस्यों ने हंगामा किया।
एक बार के स्थगन के बाद अपराह्न ढाई बजे जैसे ही दोबारा उच्च सदन की बैठक शुरु हुई सभापति जगदीप धनखड़ ने दिल्ली के उपराज्यपाल को शक्तियां प्रदान करने के प्रावधान वाले ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक’ का जिक्र किया। इसी समय संजय सिंह सहित आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्यों ने इसका विरोध किया और इस कदम को ‘गैर संवैधानिक’ बताया।
आप सदस्य संजय सिंह ने कहा कि इस विधेयक पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती।
भारत राष्ट्र समिति के के. केशव राव ने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए कहा कि मामला अदालत के विचाराधीन है, ऐसे में इस विधेयक पर चर्चा नहीं हो सकती। उन्होंने इस बारे में सभापति से जानकारी भी मांगी कि क्या ऐसा हो सकता है?
सभापति ने इस पर कहा कि यह भ्रम है कि इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि इस सदन को किसी भी मुद्दे पर चर्चा कराने का अधिकार है।
इस दौरान विरोध कर रहे आप नेताओं से धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं नियमों के अनुसार सभी को समय देता हूं। यह उच्च सदन है। हमारे आचरण को लोग देख रहे हैं। हमें अपने आचरण में अनुकरणीय होना होगा ताकि हमारी सराहना की जा सके। यह कोई सार्वजनिक सड़क नहीं है। यह कोई मंच नहीं है।’’
उन्होंने विरोध कर रहे सदस्यों से कहा, ‘‘जानकारी हासिल की जानी चाहिए ताकि लोग हम पर हंसें नहीं। जो असंवैधानिक है वह एक शब्द में नहीं है, यही कारण है कि आपको अध्ययन करने की आवश्यकता है।’’
धनखड़ ने कहा कि संविधान बहुत ही ‘योग्य तरीके’ से सदन में चर्चा पर रोक लगाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस सदन को एक प्रतिबंध के साथ इस ग्रह की हर चीज पर चर्चा करने का अधिकार है।’’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 121 उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश के अपने कर्तव्यों के निर्वहन में आचरण पर संसद में चर्चा पर प्रतिबंध लगाता है।
उन्होंने कहा कि इस नियम को छूट तब मिली है जब सदन न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा हो।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए अदालत में विचाराधीन होने की अवधारणा पूरी तरह से गलत है।’’
लेकिन सभापति की इस टिप्पणी के बावजूद आप सांसदों ने विरोध जारी रखा।
धनखड़ ने संजय सिंह से कहा कि अगर वह अपनी सीट पर नहीं बैठते हैं तो उनका नाम लेना पड़ सकता है। सभापति द्वारा नामित सांसद को शेष दिन के लिए सदन की कार्यवाही से हटना पड़ता है।
उन्होंने आप के ही राघव चड्ढा को भी इसी तरह की सलाह दी।
धनखड़ ने कहा, ‘‘आपकी सीट पर कोई दिक्कत है क्या जो बार-बार इधर से उधर आ-जा रहे हैं।’’
इसी बीच, सदन में कांग्रेस के उपनेता प्रमोद तिवारी ने मणिपुर हिंसा का मुद्दा उठाया। इसके समर्थन में अन्य विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग की।
तिवारी अभी यह मुद्दा उठा ही रहे थे कि सभापति ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ’ब्रायन को व्यवस्था का प्रश्न उठाने का समय दिया।
डेरेक ने बृहस्पतिवार को सदन की कार्यवाही से उनके संबोधन के अंशों को हटाए जाने का मामला उठाया। उन्होंने कहा, ‘‘तीन शब्दों को कार्यवाही से हटा दिया गया। कल हमने कहा था कि प्रधानमंत्री को मणिपुर पर अपना मुंह खोलना चाहिए।’’
उन्होंने सवाल किया, ‘‘माननीय प्रधानमंत्री (शब्द) को हटाया गया। मणिपुर (शब्द) को हटा दिया गया। क्यों?’’ उन्होंने यह जानना चाहा कि क्या इनमें से कोई शब्द संसदीय कार्यवाही के लिए उपयुक्त नहीं है।
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन बृहस्पतिवार को मणिपुर के मुद्दे पर दोनों सदनों में विपक्षी सदस्यों ने भारी हंगामा किया था। इसके कारण लोकसभा की कार्यवाही एक बार और राज्यसभा की कार्यवाही दो बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गयी थी।
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