देश की खबरें | श्रमिकों पर हमले के दावे वाला ट्वीट: न्यायालय ने कहा- याचिकाकर्ता को अधिक जिम्मेदार होना चाहिए

नयी दिल्ली, छह अप्रैल तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी श्रमिकों पर हमलों के बारे में झूठी सूचना फैलाने के आरोपी एक वकील को लेकर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि उन्हें ‘‘अधिक जिम्मेदार’’ होना चाहिए। न्यायालय ने उन्हें माफी मांगने के लिए कहा।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ अधिवक्ता प्रशांत कुमार उमराव द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनके सत्यापित ट्विटर हैंडल पर कहा गया है कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता हैं।

अधिवक्ता उमराव ने मामले में अग्रिम जमानत देते समय मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई एक शर्त को चुनौती भी दी है।

उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई शर्त को संशोधित किया जिसमें कहा गया था कि उमराव 15 दिनों की अवधि के लिए प्रतिदिन पूर्वाह्न साढ़े दस बजे और शाम साढ़े पांच बजे पुलिस के समक्ष पेश होंगे और इसके बाद भी पूछताछ के लिए जरूरत पड़ने पर वह पेश होंगे।

उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता 10 अप्रैल को जांच अधिकारी (आईओ) के समक्ष पेश होंगे।

पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से पूछा, ‘‘वह (उमराव) बार में कब से हैं।’’

लूथरा ने जब कहा कि सात साल से तो पीठ ने कहा, ‘‘उन्हें (याचिकाकर्ता को) अधिक जिम्मेदार होना चाहिए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘अगली तारीख से पहले, आपको माफी मांगनी चाहिए।’’

उच्चतम न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश भी पारित किया जिसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें दी गई अग्रिम जमानत ट्वीट के संबंध में तमिलनाडु में दर्ज किसी भी अन्य प्राथमिकी में लागू होगी।’’

लूथरा ने कहा कि याचिकाकर्ता ने दो याचिकाएं दायर की हैं, जिनमें से एक उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत देते समय लगाई गई शर्त के खिलाफ है और दूसरी याचिका में उनके ट्वीट को लेकर विभिन्न पुलिस थानों में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने का अनुरोध किया गया है।

राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि ऐसी कोई अन्य प्राथमिकी नहीं है जिसमें उमराव का नाम लिया गया हो।

इससे पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु में प्रवासी श्रमिकों पर हमलों के दावे संबंधी कथित झूठी सूचना देने के मामले में राज्य पुलिस द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी में एक वकील को चेन्नई की अदालत का रुख करने के लिए 20 मार्च तक ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी थी।

बाद में, उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ का दरवाजा खटखटाया था।

अपने 21 मार्च के आदेश में, उच्च न्यायालय ने कहा था कि अभियोजन पक्ष का कहना है याचिकाकर्ता ने अपने ट्विटर पेज पर झूठी सामग्री अपलोड की थी जिसमें दावा किया गया था कि बिहार के 15 निवासियों को तमिलनाडु के एक कमरे में कथित तौर पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था क्योंकि वे हिंदी में बोल रहे थे और उनमें से 12 की मौत हो गई थी।

उमराव के वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया था कि कथित ट्वीट मूल रूप से निजी समाचार चैनलों में प्रदर्शित किया गया था और उन्होंने इसे केवल री-ट्वीट किया था।

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