नयी दिल्ली, तीन मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने विभिन्न मुद्दों पर ‘प्रचार पाने के लिये याचिकाएं’ दायर करने वाले कई याचिकाकर्ताओं को सोमवार को जबर्दस्त फटकार लगाते हुए कहा कि इन्हें बिना किसी तैयारी के दायर किया गया है और उनमें से कुछ पर जुर्माना भी लगाया।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि इनमें से कुछ याचिकाएं ऐसे खयालों को लेकर दायर की हुई मालूम होती हैं जो याचिकाकर्ता के मन में टहलते या चाय पीते वक्त आए होंगे।
पीठ ने कहा, “चाय पीते-पीते खयाल आया तो सोचा पीआईएल दायर करते हैं। इस तरह से याचिकाएं दायर की गई हैं। आपको सड़क पर चलते वक्त हो सकता है कि यह विचार आया हो।”
कोविड-19 के लिए बने उपराज्यपाल-मुख्यमंत्री राहत कोष में लोगों के चंदे में कथित हेराफेरी की अदालत की निगरानी में जांच के अनुरोध संबंधी एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज करते और याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए पीठ ने कहा, “आपको कुछ तैयारी करनी होगी और तब याचिका दायर करें।”
अदालत ने कहा कि यह याचिका किसी के ट्वीट के आधार पर दायर कर दी गई, बिना आरटीआई से यह जानने की कोशिश के कि पैसों का दुरुपयोग हुआ भी है या नहीं।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाए कि कोष की निधि का इस्तेमाल दिल्ली सरकार ने विज्ञापनों में किया।
दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष के त्रिपाठी ने अदालत को बताया कि उस कोष से एक भी पैसा विज्ञापनों पर खर्च नहीं किया गया है।
अदालत ने कहा कि यह किसी मंशा से प्रेरित याचिका लगती है और निर्देश दिया कि जुर्माना चार हफ्ते के भीतर विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा कराया जाए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा 2014 में संस्थापित थिंक एक्ट राइज फाउंडेशन की एक याचिका में दिल्ली सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वह मरीजों से लिखित में लें कि जिन्हें प्लाज्मा चाहिए वे मरीज स्वस्थ होने के 14 से 28 दिन के भीतर प्लाज्मा दान करेंगे।
अदालत ने यह याचिका खारिज करते हुए 10,000 रुपये का अर्थदंड लगाया और कहा कि वह दिल्ली सरकार को ऐसी नीति बनाने के लिए नहीं कह सकती है।
पीठ ने कहा कि यह प्रचार पाने के लिये दायर याचिका लग रही है।
इसी तरह की टिप्पणी अदालत ने एक और पीआईएल खारिज करते वक्त की जिसमें संवेदनशील प्रकृति की खबरों - जैसे बड़े पैमाने पर हो रही मौतों की रिपोर्टिंग, लोगों की पीड़ा दिखाने वाली खबरों के प्रसारण के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया था।
याचिकाकर्ता, वकील ललित वलेचा ने दलील दी कि ऐसी खबरें नकारात्मकता फैलाती हैं, जीवन के प्रति असुरक्षा का भाव पैदा करती हैं।
दलील को अनाप-शनाप करार देते हुए पीठ ने कहा कि समाचार सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों होते हैं और याचिकाकर्ता को सही तथ्यों की जानकारी नहीं है।
पीठ ने कहा, “यह याचिकाकर्ता के मन में नकारात्मक विचार है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान मौतों की खबर देना नकारात्मक समाचार है।” साथ ही कहा कि जब तक मीडिया सही तथ्यों की रिपोर्टिंग कर रही है, तब तक उसपर प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते हैं।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)