लखनऊ, सात जनवरी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध निर्माण कार्यों को ध्वस्त करने में लखनऊ विकास प्राधिकरण और लखनऊ नगर निगम द्वारा की जा रही देरी पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है।
इन निर्माण कार्यों को दशकों पहले अवैध घोषित कर दिया गया था और इनके ध्वस्तीकरण के आदेश भी पारित किए गए थे।
पीठ ने कहा कि हालात ‘‘दुखद’’ हैं और अब यदि नया सर्वेक्षण कराया जाये तो हालात और बदतर मिलेगें।
अदालत ने कहा कि इन परिस्थितियों में राज्य सरकार को ऐसा तरीका इजाद करना होगा कि शहर में योजनाबद्ध विकास हो और शहरी लोगों को रहने के लिए स्वस्थ वातावरण मिल सके।
न्यायमूर्ति ए आर मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने आवास और शहरी नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि वे अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करे।
पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 10 फरवरी की तारीख तय की और कहा कि यदि अगली सुनवाई तक उनका (प्रमुख सचिव) हलफनामा नहीं दाखिल किया जाता है तो वह सुनवाई के समय संबंधित रिकॉर्ड के साथ स्वयं हाजिर रहें।
वर्ष 2012 में लेफ्टिनेंट कर्नल अशोक कुमार (सेवानिवृत्त) द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने निर्देश दिया है कि प्रमुख सचिव के व्यक्तिगत हलफनामे में यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि इतने बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कैसे किए गए।
पीठ ने प्रमुख सचिव से यह भी कहा कि वह आगे इस तरह के उल्लंघन को रोकने के उपायों से अवगत कराएं, ताकि विकास योजनाओं की मंजूरी के बिना आवासीय क्षेत्रों को बहुमंजिला या व्यावसायिक क्षेत्रों में परिवर्तित होने से रोका जा सके।
पीठ ने इस बात पर विशेष चिंता व्यक्त की कि अनधिकृत निर्माणों की एक सूची उसके समक्ष रिकॉर्ड में रखी गई थी, जिसके संबंध में 2012 में ही ध्वस्तीकरण के आदेश पारित किए जा चुके थे, लेकिन इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया कि इन ध्वस्तीकरण आदेशों का पालन क्यों नहीं किया गया।
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