नयी दिल्ली, नौ सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को ‘एमिटी लॉ स्कूल’ से पूछा कि क्या वह खुदकुशी कर चुके छात्र के परिवार को अनुग्रह राशि का भुगतान करेगा। विधि छात्र सुशांत रोहिल्ला को जरूरी उपस्थिति के अभाव में सेमेस्टर परीक्षा में बैठने से कथित तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया था जिसके कारण उसने वर्ष 2016 में आत्महत्या कर ली थी।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा रही है, लेकिन संस्था का ‘कंधा’ प्रणालीगत विफलता की जिम्मेदारी लेने के लिए पर्याप्त रूप से ‘चौड़ा’ होना चाहिए।
उच्च शिक्षा में अनिवार्य उपस्थिति की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए अदालत ने केंद्र से इस मुद्दे पर दो सप्ताह के भीतर हितधारकों से परामर्श शुरू करने के लिए कहा।
इसने केंद्र सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से सभी शैक्षिक संस्थानों को एक परिपत्र जारी करने को कहा, जिसमें उन्हें दो सप्ताह में ‘शिकायत निवारण समिति’ गठित करने या कार्रवाई का सामना करने का अंतिम अवसर दिया जाए।
एमिटी के तीसरे वर्ष के कानून छात्र सुशांत रोहिल्ला ने 10 अगस्त, 2016 को यहां अपने घर में फंदे से लटककर जान दे दी थी क्योंकि उनके कॉलेज ने जरूरी उपस्थिति के अभाव में कथित तौर पर उन्हें सेमेस्टर परीक्षा में बैठने से रोक दिया था। पीड़ित ने ‘सुसाइड नोट’ में लिखा था कि वह असफल है और जीना नहीं चाहता।
उच्च न्यायालय घटना के बाद सितंबर 2016 में उच्चतम न्यायालय द्वारा शुरू की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था, लेकिन मार्च 2017 में इसे स्थानांतरित कर दिया गया।
एमिटी के वकील ने कहा कि कॉलेज प्रशासन की तरफ से कोई गलती नहीं हुई है क्योंकि ‘सुसाइड’ पत्र में संस्थान के किसी भी व्यक्ति पर आरोप नहीं लगाया गया है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि अनुग्रह राशि के भुगतान से कुछ मुद्दों का ‘समाधान’ हो जाता है और कहा कि संस्था को मृत्यु के तुरंत बाद इसकी घोषणा करनी चाहिए थी।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)