नयी दिल्ली, एक अगस्त संसद सदस्यों ने एससी और एसटी को उप-वर्गीकृत करने और इन श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े समूहों के लिए अलग कोटा आवंटित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं। कुछ ने इस निर्णय का अधिक सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया, वहीं कुछ सांसदों ने जातिगत जनगणना कराए बिना इसके क्रियान्वयन पर चिंता जताई।
उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को उप-वर्गीकृत करने के पक्ष में फैसला सुनाया, ताकि इन श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े समूहों के लिए अलग से कोटा आवंटित किया जा सके।
सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 के बहुमत से सुनाए गए फैसले में कहा कि इस तरह का उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है। अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी से संबंधित है।
संसद के बाहर फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लोकसभा सदस्य चंद्रशेखर आजाद ने फैसले के क्रियान्वयन को लेकर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा, ‘‘क्या यह अनुच्छेद 341 का उल्लंघन नहीं है? मैं भी चाहता हूं कि वंचित वर्ग को लाभ मिले, लेकिन जिस तरह से सरकार ने निजीकरण किया है और नीतियों को लागू किया है, उससे पिछड़ी जातियों को क्या लाभ होगा? वे कहते हैं कि जो दर्द महसूस करते हैं, वही इसे जानते हैं। मैं देखना चाहता हूं कि पीठ में कितने एससी/एसटी जज हैं, वकील कौन थे और उनकी मंशा क्या थी। यह सब सामने आना चाहिए।’’
आजाद ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा, ‘‘अगर उप-वर्गीकरण शुरू होता है, तो उच्चतम न्यायालय को सबसे पहले लोकतंत्र लाने की दिशा में काम करना चाहिए। जब वे (न्यायाधीश) ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) का समर्थन करते हैं और फिर राज्यसभा सदस्य या आयोग के सदस्य बन जाते हैं, तो कई सवाल उठते हैं।’’
आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के सांसद आजाद ने कहा, ‘‘एससी और एसटी के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर क्या निगरानी की गई है? एससी/एसटी के लोग अब जागरूक हैं और चर्चा होगी। जाति जनगणना के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। मैं फैसले का अध्ययन किए बिना और कुछ नहीं कह सकता।’’
वहीं, सांसद पप्पू यादव ने प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता पर बल दिया।
यादव ने ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करने में आंकड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने सही बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि इसे कौन लागू करेगा। आरएसएस? न्यायालय के फैसले का कितना सम्मान किया गया है? जाति जनगणना के बारे में बात करना कि किसके पास क्या है और किसे अवसर मिलना चाहिए, यह बहुत स्पष्ट है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक बार जाति जनगणना हो जाने के बाद, यह स्पष्ट हो जाएगा कि किसे क्या और कब मिला। यह फैसला बिल्कुल सही है और जिन समुदायों को अवसर नहीं मिले हैं, उन्हें आगे आना चाहिए।’’
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने आरक्षण के मूल आधार पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘‘आरक्षण का आधार अस्पृश्यता थी। इसका उद्देश्य उन जातियों को आरक्षण देकर ऊपर उठाना था जो पिछड़ गई थीं। इसलिए, एससी/एसटी पर क्रीमी और नॉन-क्रीमी लेयर लागू नहीं हो सकती क्योंकि इसका आधार अस्पृश्यता और सामाजिक प्रतिनिधित्व है।’’
भाजपा सांसद बृजलाल ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एससी/एसटी समुदायों के बीच आर्थिक असमानताओं को दूर करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि जिन एससी/एसटी परिवारों की पीढ़ियां सरकारी नौकरियों में हैं और जो अमीर बन गए हैं, उन्हें आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इसके बजाय, गांवों में रहने वाले गरीब मजदूर और किसान जो शारीरिक श्रम कर रहे हैं, उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए।’’
बृजलाल ने कहा, ‘‘यह एक सामाजिक मुद्दा भी है, क्योंकि अगर आज किसी को आरक्षण से वंचित किया जाता है, तो उसकी अगली पीढ़ी फिर से गरीब हो सकती है। इसलिए, मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं।’’
कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने आरक्षण में प्रतिनिधित्व के महत्व पर जोर दिया और उच्चतम न्यायालय की व्याख्या से सहमति जताई।
उन्होंने कहा, ‘‘न्यायालय संविधान की व्याख्या करने वाला सर्वोच्च तंत्र है और आरक्षण का मतलब प्रतिनिधित्व है। ये बातें सामने आनी चाहिए।’’ उन्होंने फैसले को संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप बताया।
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