देश की खबरें | यौन हिंसा मामले में वहशी पिता को दस साल की जेल

मुंबई, छह अक्टूबर एक स्थानीय अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी नाबालिग बेटी के साथ कई वर्षों तक बलात्कार करने का दोषी ठहराते हुए 10 साल जेल की सजा सुनाई है और कहा है कि यह नहीं माना जाना चाहिए कि घर पर यौन उत्पीड़न की शिकार लड़की परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी या सामान्य रूप से व्यवहार नहीं कर सकती।

बाल यौन अपराधों से संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की एक विशेष अदालत ने 29 सितंबर को आरोपी को 10 साल जेल की सजा सुनाई थी।

विशेष न्यायाधीश जयश्री आर पुलाटे का यह विस्तृत आदेश बुधवार को उपलब्ध हो सका है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी सऊदी अरब में एक जहाज पर काम करता था और हर दो महीने में मुंबई अपने परिवार से मिलने आता था।

उसकी पत्नी ने 2014 में यह महसूस किया कि जब भी उसका पति घर पर होता उसकी बेटी उससे बचती थी और अपने कमरे में ही रहती थी। लड़की ने अंततः अपनी मां को बताया कि उसके पिता ने पिछले सात वर्षों में कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया है।

लड़की ने कहा कि वह दस साल की उम्र से ही इस दु:स्वप्न का सामना कर रही थी। उसकी मां ने पुलिस से संपर्क किया और उसके बाद मामला दर्ज किया गया।

अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराया और शिकायत दर्ज करने में देरी के बारे में बचाव पक्ष के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब दुर्व्यवहार शुरू हुआ तब लड़की बहुत छोटी थी और शुरू में उसे समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है।

अदालत ने कहा कि जब उसने नौवीं कक्षा में एक यौन शिक्षा कक्षा में भाग लिया तो वह समझ गई कि वह यौन शोषण का सामना कर रही है। न्यायाधीश ने कहा कि तब भी उसके पिता के जेल में जाने की आशंका के मद्देनजर उसके परिवार को होने वाले नुकसान के बारे में चिंतित होना स्वाभाविक था।

जिरह के दौरान, लड़की ने कहा था कि उसने नौवीं कक्षा में औसतन 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए और नियमित रूप से स्कूल जाती थी। उसने कहा था कि आरोपी की घर में मौजूदगी से स्कूल में उसकी उपस्थिति प्रभावित नहीं हुई।

उसने यह भी कहा था कि आरोपी नियमित रूप से उसके और उसके भाई-बहनों के लिए नये कपड़े और खिलौने लाता था।

बचाव पक्ष ने दलील दी थी कि ये तथ्य यौन शोषण के आरोपों से मेल नहीं खाते, लेकिन अदालत ने कहा कि यौन उत्पीड़न की हर पीड़िता की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं हो सकती।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह नहीं माना जाना चाहिए कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता परीक्षा में अच्छे अंक हासिल नहीं कर सकती।’’

अदालत ने कहा कि नियमित स्कूल उपस्थिति और परीक्षाओं में अच्छे प्रदर्शन के तथ्यों से उसके आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी द्वारा अपने बच्चों के लिए कपड़े और खिलौने लाने जैसे 'सामान्य' व्यवहार का मतलब यह नहीं होता कि वह कभी भी उस तरह का जघन्य अपराध नहीं करेगा, जैसा उसके खिलाफ आरोप लगा था।

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