देश की खबरें | विधि शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के अनुरोध वाली अर्जी पर केंद्र से जवाब तलब

नयी दिल्ली, 25 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने कानूनी शिक्षा और आत्मरक्षा प्रशिक्षण को स्कूली पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल करने के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों से सोमवार को जवाब तलब किया।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र, राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों को नोटिस जारी कर याचिका पर चार हफ्ते के भीतर अपने जवाब दाखिल करने को कहा।

याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने कहा, “अगर बच्चे को अधिकारों की जानकारी नहीं है, तो उन अधिकारों का कोई मतलब नहीं है।”

पीठ मामले पर चार हफ्ते बाद सुनवाई करेगी।

दिल्ली की रहने वाली गीता रानी की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि हर नागरिक के लिए बुनियादी कानूनों को समझना अनिवार्य है, ताकि वह संविधान द्वारा प्रदत्त अपने मौलिक अधिकारों का लाभ उठा सके और उनकी रक्षा कर सके।

अधिवक्ता रीपक कंसल के माध्यम से दाखिल याचिका में कहा गया है, “इसलिए शैक्षणिक पाठ्यक्रम में बुनियादी कानूनी शिक्षा को शामिल करना और स्कूल स्तर पर आत्मरक्षा प्रशिक्षण को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में अपनी रक्षा करने में सक्षम हों।”

याचिका के मुताबिक, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की “भारत में अपराध 2022” शीर्षक वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि 2022 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1.62 लाख मामले दर्ज किए गए, जो 2021 के मुकाबले 8.7 फीसदी अधिक हैं।

याचिका में दलील दी गई है कि कानूनी शिक्षा और आत्मरक्षा प्रशिक्षण बच्चों के खिलाफ हिंसा और अपराध की रोकथाम में अहम भूमिका निभा सकता है।

इसमें कहा गया है, “स्कूलों में इन विषयों को अनिवार्य करने से बच्चों की सुरक्षा और कल्याण में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।”

याचिका में इस बात को रेखांकित किया गया है कि बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत बच्चों को सभी प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार से बचाने के लिए बाध्य है।

इसमें दावा किया गया है कि कई मामलों में पीड़ित, मुख्यत: बच्चे, आत्मरक्षा के कौशल के अभाव के चलते अपनी रक्षा नहीं कर सके।

याचिका में कहा गया है कि 2013 में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए कानूनी शिक्षा को अनिवार्य विषय के बजाय वैकल्पिक विषय के रूप में पेश किया था, लेकिन इसे लागू किया जाना बाकी है।

इसमें कहा गया है, “हमारे देश में कई शिक्षा बोर्ड हैं, जिन्हें बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के लिए स्कूल स्तर पर कानूनी शिक्षा और आत्मरक्षा प्रशिक्षण को अपने पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषयों के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया गया है।”

याचिका के अनुसार, कानूनी साक्षरता से अधिकारों की समझ बढ़ेगी, जिससे बच्चों को अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाने और जरूरत पड़ने पर सहायता लेने में मदद मिलेगी।

इसमें कहा गया है, “यह पहल छात्रों, खासकर लड़कियों को खुद की रक्षा करने का हुनर सिखाकर और उनका आत्मविश्वास बढ़ाकर उन्हें सशक्त बनाएगा। इससे जागरूकता बढ़ेगी और बच्चे दुर्व्यवहार की शिकायत करने को प्रेरित होंगे, जिससे समग्र सुरक्षा परिदृश्य में सुधार आएगा।”

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