एंटीबॉडी की मौजूदगी हर बार बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने में सफल नहीं रहती: वैज्ञानिक
एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली:  वैज्ञानिकों का कहना है कि एंटीबॉडी की उपस्थिति सार्स-सीओवी-2 वायरस से विगत में संक्रमण का संकेत देती है लेकिन यह हर बार बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने में सफल नहीं रहती. उनका यह भी कहना है कि इस बात पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है कि एंटीबॉडी किस प्रकार के और कितने हैं तथा वे कितने समय तक बने रहेंगे. भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों के 42 लाख से भी अधिक हो जाने से चिंताएं बढ़ गयी हैं और वैज्ञानिक एंटीबॉडी के अहम मुद्दे के साथ जूझ रहे हैं और यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वे रोग की कड़ी में कैसे प्रभाव डालते हैं.

वैज्ञानिक अब भी कई अध्ययनों और परिकल्पनाओं पर काम कर रहे हैं लेकिन अब तक कोई आम सहमति नहीं बन सकी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि केवल एक चीज कही जा सकती है कि एंटीबॉडी एक संकेत है कि व्यक्ति पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुका है. प्रतिरक्षा विशेषज्ञ सत्यजीत रथ ने कहा कि वह "देखो और प्रतीक्षा करो’’ की नीति पर चलना पसंद करेंगे कि देखेंगे कि साक्ष्य क्या बताते हैं.

नयी दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी (एनआईआई) के वैज्ञानिक ने कहा कि एंटीबॉडी की मौजूदगी अपने आप स्र लोगों में रोग की कड़ी के बारे में कुछ नहीं बताती है.

पुणे के भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) से संबद्ध विनीता बाल ने पीटीआई से कहा कि समाप्त करने वाले एंटीबॉडी (एनएबी) होती हैं तथा सामान्य एंटीबॉडी भी होती हैं.