देश की खबरें | भत्ते का आदेश उन श्रमिकों के लिए नहीं जिन्हें लॉकडाउन से पहले भी भुगतान नहीं किया गया : अदालत

मुंबई, 14 जुलाई लॉकडाउन के दौरान सभी कर्मचारियों को बिना कटौती भत्तों के भुगतान के बाबत केंद्र की ओर से जारी दिशा-निर्देश उन श्रमिकों के मामले में लागू नहीं हो सकता, जिनको लॉकडाउन के पहले भी लंबी अवधि से भुगतान नहीं किया गया। बंबई उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां और न्यायमूर्ति रियाज चागला की पीठ ने सोमवार को महाराष्ट्र के पुणे की भारी मशीन निर्माता कंपनी प्रीमियर लिमिटेड और इसके कर्मचारी संघ की ओर से दायर दो रिट याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

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केंद्र ने राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान नियोक्ता किसी भी श्रमिक के भत्तों में कटौती नहीं करें।

कंपनी ने औद्योगिक अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कंपनी को निर्देश दिया गया था कि वह अपने श्रमिकों के भत्तों के एक हिस्से का भुगतान करे। इन श्रमिकों का भुगतान मई 2019 से ही नहीं किया गया था।

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कंपनी के कर्मचारी संघ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के 29 मार्च, 2020 के आदेश और इसके बाद 31 मार्च 2020 को जारी महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव का अनुपालन करने का अनुरोध किया था, जिसमें नियोक्ताओं को लॉकडाउन अवधि के दौरान भी सभी श्रमिकों के भत्तों का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

अदालत के आदेश के मुताबिक, कंपनी ने वर्ष 2017 में अपने प्लांट को इसके मूल स्थल से नयी जगह पर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया था।

राज्य श्रम आयोग ने इस शर्त पर कंपनी को स्थानांतरण के लिए अनापत्ति पत्र (एनओसी) प्रदान किया था कि इस कार्य के लिए जितने भी दिन काम बंद रहेगा, उस दौरान के भत्तों का भुगतान भी श्रमिकों को किया जाएगा।

हालांकि, कर्मचारी संघ के वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह की याचिका के मुताबिक, मई 2019 से अब तक श्रमिकों को भुगतान नहीं किया गया है।

इससे पहले कर्मचारी संघ ने औद्योगिक अदालत के समक्ष शिकायत दायर की थी। इस पर अदालत ने गत तीन मार्च को कंपनी को आदेश दिया था कि वह आने वाले हर माह की दस तारीख से पहले वेतन का भुगतान करे और यह आदेश एक मार्च से प्रभावी रहा।

लेकिन, कर्मचारी संघ उच्च न्यायालय पहुंचा और उसने दावा किया कि श्रमिकों को मार्च महीने के वेतन का भी भुगतान किया जाए। इसके लिए संघ ने केंद्र और राज्य सरकार के निर्देशों का हवाला दिया था।

उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि सरकारी आदेश वर्तमान के इस मामले में लागू नहीं होते।

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