लंदन, 12 अक्टूबर शतरंज ओलंपियाड स्वर्ण पदक विजेता वंतिका अग्रवाल की नजरें अब ग्रैंडमास्टर बनने पर है और उनका यह सपना अगले साल की शुरूआत में पूरा हो सकता है ।
उत्तर प्रदेश के नोएडा की रहने वाली वंतिका की अब तक की राह आसान नहीं थी लेकिन उनके कैरियर में उनकी मां का बड़ा योगदान रहा है । उन्होंने वंतिका को हर चुनौती का सामना करके दक्षिण भारत के दबदबे वाले इस खेल में अपनी छाप छोड़ने के लिये प्रेरित किया । उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनी की अपनी नौकरी छोड़कर बेटी के सपने पूरे किये ।
वंतिका ने हाल ही में बुडापेस्ट में शतरंज ओलंपियाड में टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता ।
टेक महिंद्रा ग्लोबल शतरंज लीग की ब्रांड दूत 21 वर्ष की वंतिका ने कहा ,‘‘ इस स्तर तक पहुंचना आसान नहीं था क्योंकि उत्तर भारत में पढाई पर ज्यादा जोर रहता है । अगर आप शतरंज या कोई भी खेल खेलते हैं तो अतिरिक्त समय देना होता है ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ स्कूल में भी सभी मेरा सहयोग तो कर रहे थे लेकिन किसी को शतरंज के बारे में पता नहीं था । जब मैं उन्हें अपनी उपलब्धियों के बारे में बताती थी तो उन्हें कोई रूचि नहीं होती थी । मैने श्रीराम कॉलेज आफ कॉमर्स से बीकॉम (आनर्स) किया लेकिन वहां भी नहीं पता कि मैने ओलंपियाड स्वर्ण जीता है ।’’
हांगझोउ एशियाई खेलों में महिला टीम स्पर्धा का रजत पदक जीतने वाली वंतिका ने उत्सुकतावश शतरंज खेलना शुरू किया था ।
उन्होंने बताया ,‘‘ मैने कराटे क्लास में भाग लिया और थोड़ा भरतनाट्यम भी सीखा । साढे सात साल की उम्र से मुझे शतरंज में मजा आने लगा । पहले टूर्नामेंट में मुझे ईनामी राशि भी मिली थी । मुझे लगता है कि ईनाम भी प्रेरित करते हैं ।’’
वंतिका ने कहा ,‘‘ मैने एशियाई चैम्पियनशिप दिल्ली 2011 में अंडर 19 खिताब जीता । देश भर में ओपन टूर्नामेंट खेलती रही । 2022 से अब तक 28 ओपन टूर्नामेंट खेल चुकी हूं । अब मेरा सपना ग्रैंडमास्टर बनने का है और अगले साल यह पूरा हो सकता है ।’’
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