नयी दिल्ली, 21 दिसंबर राष्ट्रीय राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सक ‘मल्टीपल मायलोमा’ के इलाज के लिए एंटीबॉडी-आधारित किफायती ‘सेलुलर थेरेपी’ विकसित करने की प्रक्रिया में जुटे हैं।
‘मल्टीपल मायलोमा’ रक्त कैंसर का एक प्रकार है।
इस तरह की थेरेपी से भारत में मरीजों के लिए ‘सीएआर-टी सेल थेरेपी’ जैसे उन्नत उपचार के अधिक किफायती और सुलभ बनने की उम्मीद है।
एम्स के डॉ. बी आर आंबेडकर संस्थान रोटरी कैंसर अस्पताल में कैंसर रोग विज्ञान विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मयंक सिंह ने कहा, ‘‘काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी-सेल थेरेपी अनुकूलक सेलुलर थेरेपी का एक प्रकार है जिसमें मरीज की टी कोशिकाओं को अलग किया जाता है, आनुवंशिक रूप से संवर्धित किया जाता है और कैंसर कोशिकाओं को पहचानने तथा नष्ट करने के लिए मरीज के शरीर में वापस डाला जाता है।’’
यह ‘बी-सेल मैचुरेशन एंटीजन’ (बीसीएमए) को लक्षित करने पर आधारित है। यह विशिष्ट ट्यूमर एंटीजन को लक्षित करने में मदद करता है जो कैंसर कोशिकाओं, विशेष रूप से मल्टीपल मायलोमा के मामलों में पाया जाता है।
सिंह ने कहा, ‘‘इसलिए एम्स के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विकसित थेरेपी बीसीएमए को मल्टीपल मायलोमा कोशिकाओं पर एक लक्ष्य के रूप में पहचानती है ताकि उन्हें खत्म किया जा सके।’’
उन्होंने कहा कि फिलहाल थेरेपी का पशुओं पर परीक्षण किया गया है और इसके आशाजनक परिणाम सामने आए हैं।
सिंह ने कहा, ‘‘हम इस सीएआर-टी सेल थेरेपी का निकट भविष्य में मनुष्यों पर चरण-1 नैदानिक परीक्षणों के लिए आजमाने का इरादा रखते हैं ताकि इसकी सुरक्षा और प्रभावकारिता के बारे में पर्याप्त सबूत एकत्र किए जा सकें। हमारा उद्देश्य इस थेरेपी की लागत को काफी कम करना है। सीएआर-टी सेल थेरेपी के अन्य स्वरूप भी हैं लेकिन इनकी लागत काफी अधिक है।’’
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