जरुरी जानकारी | इंडोनेशिया के निर्यात शुल्क बढ़ाने के बावजूद मांग कमजोर रहने से तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट जारी

नयी दिल्ली, 19 दिसंबर इंडोनेशिया द्वारा कच्चे पामतेल (सीपीओ) का निर्यात शुल्क बढ़ाने के बावजूद ऊंचे दाम पर मांग कमजोर होने के कारण देश के प्रमुख बाजारों में बृहस्पतिवार को सीपीओ, पामोलीन सहित सभी तेल-तिलहन कीमतें नीचे आईं। आयातित तेलों के दाम में गिरावट आने के कारण सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल तथा बिनौला तेल के दाम गिरावट के साथ बंद हुए।

मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट है जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में सुधार है।

बाजार सूत्रों ने बताया कि इंडोनेशिया ने सीपीओ के निर्यात शुल्क को 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया है। सीपीओ का दाम पहले ही अधिक था और आगे दाम बढ़ने से इस तेल का खपना और मुश्किल हो चला है। ऊंचे दाम पर लिवाली कमजोर रहने के बीच सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में तो गिरावट आई ही, इसका असर बाकी तेल-तिलहनों पर भी हुआ जिनके दाम टूट गये। नवंबर में सीपीओ, पामोलीन का लगभग 39 प्रतिशत अधिक आयात होने का असर अभी तक कायम है और यह भी सीपीओ, पामोलीन में गिरावट का एक अन्य कारण है।

सूत्रों ने कहा कि पिछले लगभग 10-12 दिन में आयातित तेल के दाम टूटने का असर बाकी तेल-तिलहनों पर दिखा और नतीजतन सरसों तेल-तिलहन में भी गिरावट आई। बाकी खाद्य तेलों के दाम लगभग 10-12 प्रतिशत तक टूटे हैं। इस गिरावट का असर सरसों पर कम दिखा और गत 10-12 दिन में सरसों के दाम महज 4-5 प्रतिशत ही टूटे हैं।

सूत्रों ने कहा कि मूंगफली का इस बार पर्याप्त उत्पादन हुआ है और आवक का भी दबाव बढ़ रहा है। थोक बाजार में लिवाली मंदा रहने से मूंगफली तेल-तिलहन में भी गिरावट है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में मूंगफली तेल का थोक दाम पामोलीन जैसे खाद्य तेलों से भी काफी कम हो चला है। लेकिन खुदरा बाजार पर नजर घुमायें तो दिखता है कि वहां मूंगफली तेल के दाम पहले की तरह महंगे बने हुए हैं और यह पाम, पामोलीन से ऊंचे खुदरा दाम पर बिक रहे हैं। आयातित तेल के दाम में आई गिरावट से भी मूंगफली के दाम प्रभावित हुए हैं।

सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन के किसानों और पेराई मिलों की हालत बेहद खराब है। सरकारी खरीद होने के बावजूद सोयाबीन के हाजिर दाम कमजोर बने हुए हैं। सोयाबीन से निकलने वाले डी-आयल्ड केक (डीओसी) की निर्यात मांग भी बेहद कमजोर है। इन वजहों से सोयाबीन तेल-तिलहन में भी गिरावट है।

उन्होंने कहा कि जबतक सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, बिनौला जैसे देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित नहीं किया जायेगा तबतक बाकी कोई उपाय अपेक्षित परिणाम देने की स्थिति में नहीं होंगे। सरकारी खरीद एक फौरी उपाय हो सकता है लेकिन इससे तेल-तिलहनों का बाजार नहीं बनेगा जहां मांग-आपूर्ति के आर्थिक नियम के तहत देशी तेल-तिलहन की भरपूर खपत संभव हो जाये।

सूत्रों ने कहा कि कुछ खाद्य जिंसों के वायदा कारोबार पर लगा प्रतिबंध 20 दिसंबर को समाप्त होने जा रहा था और सरकार ने इस रोक की सीमा को आगे 31 जनवरी, 2025 तक बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि वायदा कारोबार में खाद्य जिसों के कारोबार पर लगी रोक को स्थायी कर देना चाहिये। वायदा कारोबार की वजह से कपास नरमा का बना-बनाया बाजार आज ध्वस्त हो गया है और इससे हम सभी को सबक लेना चाहिये।

सूत्रों ने कहा कि गिरावट के आम रुख के अनुरूप बिनौला खल के दाम भी गिरावट के साथ बंद हुए।

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन - 6,425-6,475 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली - 5,825-6,150 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 14,050 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल - 2,130-2,430 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 13,400 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 2,245-2,345 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 2,245-2,370 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 12,900 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 12,650 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,900 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 12,650 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 11,500 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 13,900 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 12,850 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना - 4,150-4,200 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 3,850-3,950 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,100 रुपये प्रति क्विंटल।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)