नयी दिल्ली, सात जनवरी उच्चतम न्यायालय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की उस याचिका पर सुनवाई करने से मंगलवार को इनकार कर दिया, जिसमें चुनाव याचिका दायर करने के लिए 45 दिन की समय सीमा को चुनौती दी गयी है।
न्यायालय ने कहा कि वह कानून नहीं बना सकता और याचिकाओं का पिटारा नहीं खोल सकता।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने, हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के राम भुआल निषाद के निर्वाचन को चुनौती देने वाली मेनका गांधी की याचिका पर नोटिस जारी किया और चार सप्ताह में सपा नेता से जवाब मांगा।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 81 में किसी उम्मीदवार के निर्वाचन की तारीख से 45 दिनों की अवधि के भीतर ही चुनाव याचिका दायर की जा सकती है।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार मेनका गांधी सपा नेता निषाद से 43,174 मतों से हार गई थीं।
पीठ ने कहा, ‘‘हम चुनाव याचिकाओं का पिटारा नहीं खोलना चाहते। हम याचिका पर विचार करने को लेकर इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि आप चाहते हैं कि हम कानून बनाएं, (लेकिन) हम यह नहीं कर सकते। आप चाहते हैं कि हम 45 दिनों की सीमा को कानून की दृष्टि से गलत ठहरायें। आप चाहते हैं कि हम 60 दिन या 90 दिन तय करें, आप चाहते हैं कि हम कानून बनाएं, जो कदापि नहीं किया जा सकता।’’
मेनका की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने वह याचिका वापस ले ली, जिसमें 1973 के ‘‘हुकुमदेव नारायण यादव’’ मामले के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था।
संबंधित फैसले में चुनाव याचिकाओं को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत समयसीमा और प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया था।
लूथरा ने कहा कि संबंधित कानून पर उस व्यक्ति के संदर्भ में पुनर्विचार किया जाना चाहिए, जिसने चार आपराधिक मामलों के तथ्यों को दबाया है।
उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल अदालत से कानून बनाने का अनुरोध नहीं कर रहा था, बल्कि केवल यह कह रहा था कि 1973 का फैसला कानून की दृष्टि से गलत था और इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता रिट याचिका में यह दलील नहीं दे सकता कि कोई विशेष निर्णय कानून की दृष्टि से गलत है और वह ऐसा केवल सिविल अपील में ही कर सकता है, जहां निर्णय पर भरोसा किया गया हो।
पीठ ने लूथरा से कहा, ‘‘यदि हम निर्धारित सीमा में हस्तक्षेप करना शुरू करते हैं, तो परिणाम देखें। यह कानून के मूल उद्देश्य को ही नष्ट कर देगा।’’
शीर्ष अदालत ने गांधी से कहा था कि 45 दिन की समय सीमा निर्धारित करना नीतिगत मामला है और उसे ऐसी सीमा तय करने के लिए विधायी मंशा को देखना होगा।
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘‘ऐसा शायद इसलिए किया गया था, ताकि निर्वाचित उम्मीदवार के निर्वाचन पर कोई अनिश्चितता के बादल न मंडराते रहें।’’
मेनका गांधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 14 अगस्त 2024 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें निषाद के निर्वाचन के खिलाफ उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि इसकी अधिकतम समय-सीमा समाप्त हो चुकी है।
उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने कहा कि याचिका 45 दिन की समय सीमा के बाद दायर की गई थी और इस पर गुण-दोष के आधार पर सुनवाई नहीं की जा सकती।
मेनका गांधी ने दलील दी थी कि निषाद ने मतदाताओं को उनके (सपा नेता के) पूरे आपराधिक इतिहास को जानने के अधिकार से वंचित किया है और याचिका दायर करने में देरी को माफ किया जाना चाहिए।
गांधी ने दलील दी थी कि निषाद के खिलाफ 12 आपराधिक मामले लंबित हैं, लेकिन सपा नेता ने अपने हलफनामे में केवल आठ का खुलासा किया है।
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