Nithari Killings: सुरेंद्र कोली दो बार फांसी के फंदे पर लटकने से बचा, ऐसे चले दांव
Surendra Koli (Photo Credit: x )

नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर : बहुचर्चित निठारी कांड (Nithari scandal) के केंद्र में रहा सुरेंद्र कोली फांसी पर लटकाए जाने से महज कुछ दिन पहले दो बार बाल-बाल बच गया था, और सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने उसे बड़ी राहत देते हुए बरी कर दिया. कोली ने कानूनी प्रक्रिया के खतरनाक उतार-चढ़ाव को पार किया और 2011 तथा 2014 में दो मृत्यु वारंट (फांसी की सजा के क्रियान्वयन) से बच गया. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा शुरू में दुष्कर्म और हत्या के 16 मामलों में आरोपी बनाए गए घरेलू सहायक कोली को गाजियाबाद की एक विशेष अदालत ने तीन मामलों में बरी कर दिया था, लेकिन शेष 13 मामलों में उसे मौत की सजा सुनायी थी. विशेष अदालत ने 14 साल की लड़की से दुष्कर्म व उसकी हत्या मामले में कोली को 13 फरवरी 2009 को मौत की सजा सुनायी थी, जिस पर बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी मुहर लगा दी थी. उच्चतम न्यायालय ने 15 फरवरी 2011 को उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उसकी अपील खारिज कर दी थी.

इस मामले में, गाजियाबाद की विशेष अदालत ने उसे दो मृत्यु वारंट जारी किए थे, लेकिन फांसी पर लटकाए जाने से कुछ दिन पहले कोली के कानूनी उपायों के कारण उन्हें क्रियान्वित नहीं किया जा सका. गाजियाबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कोली को 24 मई 2011 से 31 मई 2011 के बीच किसी भी दिन सुबह चार बजे फांसी पर लटकाए जाने के लिए एक मृत्यु वारंट जारी किया था. कोली ने सात मई 2011 को राज्यपाल के पास दया याचिका दायर की थी, जिससे मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लग गयी थी. राज्यपाल ने दो अप्रैल 2013 को दया याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास दया याचिका दायर की गयी, जिन्होंने 20 जुलाई 2014 को इसे खारिज कर दिया था. कोली ने इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए पुनर्विचार का अनुरोध किया, लेकिन 24 जुलाई 2014 को याचिका खारिज कर दी गयी. यह भी पढ़ें : Nithari Killings: मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली इलाहाबाद HC से बरी, निचली अदालत ने सुनाई थी फांसी की सजा

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कोली को फांसी देने के लिए दो सितंबर 2014 को एक और वारंट जारी किया, जिसमें सात सितंबर 2014 से 12 सितंबर 2014 के बीच किसी भी दिन सुबह छह बजे फंसी देने का आदेश दिया गया. इसके दो दिन बाद, उसे फांसी देने के लिए गाजियाबाद की डासना जेल से मेरठ के जिला कारागार ले जाया गया क्योंकि डासना में फांसी देने की व्यवस्था नहीं थी. इसके बाद ही कोली को यह पता चला कि उसे फांसी दी जाने वाली है. उच्चतम न्यायालय में छह सितंबर को पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई बहाल करने की अर्जी दायर की गयी. शीर्ष न्यायालय ने आठ सितंबर 2014 को देर रात एक बजे मृत्यु वारंट पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी.

इसके बाद, एक बार फिर 12 सितंबर को फांसी देने पर रोक लगा दी गयी और मामले पर सुनवाई के लिए 28 अक्टूबर की तारीख तय की गयी. इस बीच, कोली को वापस डासना जेल ले जाया गया. उच्चतम न्यायालय ने 28 अक्टूबर 2014 को उसकी याचिका खारिज कर दी. इसके तीन दिन बाद, ‘पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया, जिसके परिणामस्वरूप कोली की मौत की सजा को इस मामले में उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. पीड़िता के पिता ने उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी, जो अभी लंबित है. कोली शेष 12 मामलों में भी फांसी पर लटकाए जाने से बच गया, जिसमें उच्च न्यायालय ने सोमवार को उसे बरी किया है. लेकिन वह एक सक्षम अदालत के अगले आदेश तक उम्रकैद की सजा काटता रहेगा.