नयी दिल्ली, 27 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि उसके 2004 के फैसले पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है जिसमें कहा गया था कि शैक्षणिक संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आरक्षण देने के लिए राज्यों के पास अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों का उपवर्गीकरण करने की शक्ति नहीं है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि ई वी चिन्नैया मामले में संविधान पीठ के 2004 के फैसले पर फिर से गौर किए जाने की जरूरत है और इसलिए इस मामले को उचित निर्देश के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाना चाहिए।
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पीठ में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि उसकी नजर में 2004 का फैसला सही से नहीं लिया गया और राज्य किसी खास जाति को तरजीह देने के लिए अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के भीतर जातियों को उपवर्गीकृत करने के लिए कानून बना सकते हैं।
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ पंजाब सरकार द्वारा दायर इस मामले को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के पास भेज दिया ताकि पुराने फैसले पर फिर से विचार करने के लिए वृहद पीठ का गठन किया जा सके।
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पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने आरक्षण देने के लिए एससी/एसटी को उपवर्गीकृत करने की सरकार को शक्ति देने वाले राज्य के एक कानून को निरस्त कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने इसके लिए उच्चतम न्यायालय के 2004 के फैसले का हवाला दिया और कहा कि पंजाब सरकार के पास एससी/ एसटी को उपवर्गीकृत करने की शक्ति नहीं है।
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