नयी दिल्ली, 27 मई सरसों तिलहन किसानों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर बिकवाली नहीं करने से देश में सोमवार को सरसों तेल-तिलहन के दाम मजबूत बंद हुए। मलेशिया एक्सचेंज में शाम को सुधार लौटने के बीच कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन भी मजबूत बंद हुआ। दूसरी ओर सुस्त कारोबार के बीच मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन और बिनौला तेल के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि किसान अब किसी अफवाह के जाल में फंस नहीं रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि चुनाव के बाद सरकार की ओर से तिलहन बाजार की बदहाली को दूर करने के प्रयास किये जायेंगे और देशी तेल-तिलहनों के खपने की स्थिति तैयार की जायेगी। कम दाम पर बिकवाली नहीं करने से सरसों तेल-तिलहन में सुधार है। मलेशिया एक्सचेंज में शाम का बाजार मजबूत होने से सीपीओ एवं पामोलीन तेल कीमतों में भी सुधार है। दूसरी ओर शिकॉगो एक्सचेंज आज बंद है।
उन्होंने कहा कि ऊंचे भाव की वजह से सुस्त कारोबार के बीच मूंगफली तेल-तिलहन, शिकॉगो एक्सचेंज बंद होने से सोयाबीन तेल-तिलहन और माल की अनुलब्धता के बीच बिनौला तेल कीमतें अपरिवर्तित रहीं।
सूत्रों ने कहा कि तिलहन पर होने वाली परिचर्चाओं में जरा सा बाजार में सुधार होने पर चर्चा, जमकर होने लगती है और इन चर्चाओं में तेल-तिलहन उद्योग के बारे में समग्रता से ध्यान नहीं दिया जाता। एक खास बात देखने को मिलती है कि इन चर्चाओं में तेल के दाम में सुधार और महंगाई को लेकर तो चर्चा होती है लेकिन पूरे तिलहन किसान एवं तेल उद्योग की बदहाली,, मुर्गीदाने में इस्तेमाल होने वाले डी-आयल्ड केक (डीओसी) एवं मवेशी आहार में उपयोग होने वाले तेल खली की होने वाली किल्लत, खाद्य तेलों की महंगाई के लिए असल में जिम्मेदार अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का अधिक निर्धारण जैसे मूल मुद्दे के बारे में कोई चर्चा नहीं होती। संभवत: सबका मुख्य ध्यान खाद्य तेलों के थोक दाम तक सीमित रहता है जिससे खाद्य तेल उद्योग की समस्याओं का निवारण करना असंभव है। ऐसी परिचर्चाओं में भाग लेने वालों को पूरे बाजार और उसके सभी अंशधारकों के हितों को ध्यान में रखना होगा और तभी कोई ऐसा रास्ता निकल सकता है जिससे सभी को फायदा हो।
सूत्रों ने कहा कि डीओसी की किल्लत होने पर एक करोड़ टन भी डीओसी का आयात किया जा सकता है लेकिन तेल खल की दिक्कत को आयात से दूर करना संभव नहीं है और अधिकतम 30-40 हजार टन खल का ही मुश्किल से आयात किया जा सकता है। मुर्गी दाने और पशु आहार की इस कमी को नकली खल या वायदा कारोबार से पूरा नहीं किया जा सकता है। अगर वायदा कारोबार में सस्ते में बिनौला खल मिल रहा है तो कपास उत्पादन पर निर्भर होने की जरूरत ही क्यों है? कभी देश में सूरजमुखी का 10-15 लाख टन डीओसी निकलता था जो अब पूरी तरह खत्म हो चला है। यही हाल सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, कपास (बिनौला) का न हो जाये और इनकी खेती घट जाये। इन मुद्दों पर तेल विशेषज्ञों को चर्चा करते देखना मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि कपास की अभी बिजाई चल रही है और वायदा कारोबार में बिनौला खल का दाम तोड़कर रखा गया है। इससे किसान कहीं से उत्साहित तो नहीं होंगे। कपास की खेती के पीछे किसानों का एक मुख्य आकर्षण बिनौला खल से मिलने वाले लाभ का भी होता है। यह स्थिति कहीं से भी देश को तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता की ओर नहीं ले जायेगा। सिर्फ आत्मनिर्भरता की बात कहने से काम पूरा नहीं होगा बल्कि उसकी परिस्थितियों को तैयार करने की ओर विशेष ध्यान देना होगा।
तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 6,050-6,100 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,200-6,475 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 14,850 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,245-2,545 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 11,750 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,900-2,000 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,900-2,015 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,275 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,125 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,750 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,725 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,000 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,875 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 8,925 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 4,850-4,870 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 4,650-4,770 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,075 रुपये प्रति क्विंटल।
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