बेंगलुरु, दो सितंबर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सोमवार को मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ निचली अदालत की कार्यवाही पर अंतरिम रोक नौ सितंबर तक बढ़ा दी।
उच्च न्यायालय ने मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियोजन के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मंजूरी की वैधता को चुनौती देने वाली सिद्धरमैया की याचिका पर सुनवाई एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
प्रतिवादी संख्या-चार स्नेहमयी कृष्णा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के.जी. राघवन ने सुनवाई पुनः शुरू होने पर दलीलें पेश कीं।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा, ‘‘वरिष्ठ अधिवक्ता के जी राघवन की बात सुनी गई, महाधिवक्ता ने अपनी दलीलें रखने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा है। मामले को नौ सितंबर को दोपहर ढाई बजे सूचीबद्ध किया जाता है। 19 अगस्त को दिया गया अंतरिम आदेश अगली सुनवाई की तारीख तक जारी रहेगा।’’
राज्यपाल ने 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत प्रदीप कुमार एस पी, टी जे अब्राहम और स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं में उल्लिखित आरोपों के संदर्भ में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की।
सिद्धरमैया ने राज्यपाल के आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए 19 अगस्त को उच्च न्यायालय का रुख किया। याचिका में मुख्यमंत्री ने कहा कि मंजूरी आदेश मनमाने तरीके से जारी किया गया, यह वैधानिक आदेशों का उल्लंघन है और संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है, क्योंकि इसमें मंत्रिपरिषद की सलाह शामिल नहीं है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत बाध्यकारी है।
सिद्धरमैया ने राज्यपाल के आदेश को रद्द करने का अनुरोध करते हुए कहा कि उनका निर्णय कानूनी रूप से टिकने वाला नहीं है और यह प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है।
राघवन ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का सिद्धांत है: ‘‘किसी भी कानूनी या गैरकानूनी लाभ को प्राप्त करने के लिए अपने सार्वजनिक पद का उपयोग न करें।’’
उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत दी गई मंजूरी को प्रतिकूल दृष्टिकोण से न देखा जाए, बल्कि लोक प्रशासन में ईमानदारी सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से देखा जाए, तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रशासन के प्रति जनता का विश्वास अगर खत्म हुआ है तो उसे पुनः बहाल किया जाए।
इस पर, न्यायाधीश ने पूछा कि प्रशासन में जनता का विश्वास कहां खत्म हो गया है? राघवन ने कहा, ‘‘यह तथ्य कि जांच आयोग अधिनियम के तहत जांच आयोग का गठन किया गया है, अपने आप में यह दर्शाता है कि इस मामले की जांच करवाने की इच्छा है और यह सार्वजनिक महत्व का मामला है...इसका उल्लेख राज्यपाल ने अपने आदेश में किया है...।’’
कांग्रेस नीत सरकार ने 14 जुलाई को एमयूडीए घोटाले की जांच के लिए उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.एन. देसाई की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था।
एमयूडीए ‘घोटाले’ में यह आरोप लगाया गया है कि सिद्धरमैया की पत्नी बी एम पार्वती को मैसुरु के पॉश माने जाने वाले इलाके में प्रतिपूरक रूप से भूखंड आवंटित किया गया था, जिसका संपत्ति मूल्य उनकी भूमि की तुलना में अधिक था, जिसे एमयूडीए द्वारा ‘‘अधिग्रहित’’ किया गया था।
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