बेंगलुरु, 17 सितंबर कर्नाटक विधानसभा ने शुक्रवार को ‘कैदियों की पहचान (कर्नाटक संशोधन) विधेयक’ पारित किया जिसमें शांति भंग और अपराध को रोकने तथा प्रभावी निगरानी के लिए कैदियों के रक्त, डीएनए और आवाज के नमूने लेने तथा आइरिश (आंखों) स्कैन करने जैसे कदम शामिल हैं।
यह विधेयक कैदियों की पहचान से जुड़े केन्द्रीय कानून में कर्नाटक की जरूरत के अनुरूप संशोधन करता है। संशोधित कानून प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट सहित पुलिस अधीक्षक तथा पुलिस उपायुक्तों को अधिकार देता है जिससे कि वे नमूने एकत्र करने का आदेश दे सकें।
विधेयक को चर्चा के लिए सदन में रखते हुए गृह मंत्री ए. जनेन्द्र ने कहा, ‘‘अभी तक सिर्फ पैरों का प्रिंट (फुट प्रिंट) लिया जाता था। अब हमने इसमें रक्त, डीएनए, आवाज और आइरिश स्कैन के नमूनों को भी शामिल कर लिया है। पहले ये नमूने सिर्फ उन कैदियों के लिए जाते थे जिन्हें कम से कम एक साल के सश्रम कारावास की सजा हुई होती थी, अब इसे बदलकर एक महीना कर दिया गया है।’’
उन्होंने कहा कि यह विधेयक पुलिस अधीक्षकों और पुलिस उपायुक्तों को इन नमूनों को 10 साल के बाद नष्ट करने का आदेश देने का अधिकार देता है, इसमें अपवाद सिर्फ अदालती आदेश या अन्य किसी सक्षम प्राधिकार का आदेश ही रहेगा।
विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के विधायक तनवीर सैत ने जानना चाहा कि जब लोगों के आधार डेटा में यह सभी जानकारी उपलब्ध है तो क्या अलग से ऐसी जानकारी जुटाना आवश्यक है।
कांग्रेस के एक अन्य विधायक प्रियांक खड़गे ने कहा कि सरकार का इरादा जांच के लिए आवश्यक बायोमीट्रिक और फॉरेंसिक जानकारी एकत्र करने का है तो क्या इसके लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा मौजूद है।
उन्होंने यह भी जानना चाहा, ‘‘क्या सरकार ने लोगों के निजता के अधिकार के संबंध में विचार किया है?’’
सवालों के जवाब में मंत्री ने कहा कि एक महीने या उससे ज्यादा का सश्रम कारावास भुगत रहे कैदियों के नमूने लिए जाएंगे और उन सभी को बेंगलुरु में ‘क्रिमिनल ट्रैकिंग सिस्टम’ में स्टोर किया जाएगा, जहां से उनके लीक होने का कोई खतरा नहीं है।
उन्होंने कहा कि इससे बार-बार अपराध करने वालों की पहचान करने में आसानी होगी।
विधानसभा में ‘कर्नाटक कारागार विकास बोर्ड’ के गठन से संबंधित विधेयक और दंड प्रक्रिया संहिता (कर्नाटक संशोधन) विधेयक भी पारित हुआ।
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