13 लाख टन रेडियोएक्टिव पानी समंदर में छोड़ेगा जापान
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जापान, 24 अगस्त से रेडियोधर्मी पानी समंदर में छोड़ना शुरू करेगा. फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र का ये पानी करीब 10 साल तक समंदर में छोड़ा जाता रहेगा. सरकार और विशेषज्ञ इसे सुरक्षित बताते हैं, लेकिन कई लोग आशंकित भी हैं.2011 के ताकतवर भूकंप और उसके बाद आई सुनामी लहरों ने जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजलीघर को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया. मशीनों को ठंडा रखने में इस्तेमाल होने वाला पानी, रेडियोएक्टिव रिएक्टरों और छड़ों के संपर्क में आया. जापान का कहना है कि अब इसी पानी को साफ कर समंदर में छोड़ा जाएगा. यह प्रक्रिया 24 अगस्त से शुरू होगी. छोड़े जाने वाले पानी की फिल्टरिंग और डायल्यूशन प्रोसेस करीब 10 साल तक चलेगी.

रेडियोधर्मी पानी

फिलहाल यह पानी टंकियों में जमा है. पानी इतना ज्यादा है कि इससे ओलंपिक खेलों में इस्तेमाल होने वाले 500 स्विमिंग पूल भरे जा सकते हैं. फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजलीघर चलाने वाली "टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी" (टेप्को) के मुताबिक, फिल्टरिंग के दौरान पानी से आइसोटोप्स निकाले जा रहे हैं. अब पानी में सिर्फ हाइड्रोजन का आइसोटोप ट्रिटियम बचा है. ट्रिटियम भी रेडियोधर्मी है. टेप्को का कहना है कि ट्रिटियम को पूरी तरह पानी से अलग करना काफी मुश्किल है. कंपनी के मुताबिक इसकी सघनता को बहुत कम किया जाएगा, ताकि पानी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरे.

इंसान और धरती के लिए परमाणु ऊर्जा की असली कीमत

ट्रिटियम को तुलनात्मक रूप से कम नुकसानदेह माना जाता है. इंसानी त्वचा प्राकृतिक रूप से इसे नहीं सोख पाती है. हालांकि 2014 में आए एक अमेरिकी साइंस आर्टिकल के मुताबिक, बहुत ज्यादा ट्रिटियम वाले पानी को पीने से कैंसर का खतरा हो सकता है.

सुरक्षा से जुड़े सवाल

यूएन की परमाणु निगरानी संस्था, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने जुलाई में इस पानी को छोड़ने की अनुमति दी. आईएईए के मुताबिक, साफ किया गया पानी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है. आईएईए ने यह भी कहा कि पर्यावरण पर इस पानी का नकारात्मक असर, ना के बराबर होगा.

पर्यावरण कार्यकर्ता इस तर्क से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि रेडियोधर्मी पानी छोड़ने के बाद किस तरह के नतीजे आएंगे, इसका पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है. पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के मुताबिक, ट्रिटियम, कार्बन-14, स्ट्रॉनटियम-90 और आयोडीन-129 के बायोलॉजिकल जोखिम का अध्ययन नाकाफी है.

जापान सरकार और टेप्को के दस्तावेजों के मुताबिक, फिल्टरिंग के दौरान स्ट्रॉनटियम-90 और आयोडीन-129 को पूरी तरह साफ कर दिया जाएगा. कार्बन-14 बहुत कम मात्रा में रहेगा. यह मात्रा सुरक्षा मानकों में दर्ज संख्या से बहुत कम होगी. जापान का दावा है कि ट्रिटियम का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा पेयजल के लिए तय किए गए मानकों से भी कम होगा.

जापान सरकार के दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि अगर रेडियोधर्मी पदार्थ की सघनता सामने आई, तो "जरूरी कदम उठाए जाएंगे, इनमें तुरंत पानी छोड़े जाने पर रोक" भी शामिल है.

पड़ोसियों और मछुआरों का रुख

फुकुशिमा का पानी महासागर में छोड़ने की योजना पर जापान के पड़ोसी देश चीन, दक्षिण कोरिया और रूस भी चिंता जताते रहे हैं. अब दक्षिण कोरिया की सरकार जापान की योजना से सहमत दिखती है. दक्षिण कोरिया के मुताबिक, उसके अपने शोध में यह पता चला है कि पानी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतर रहा है. सियोल ने आईएईए के शोध का सम्मान करने की बात भी कही.

चीन और रूस चाहते हैं कि जापान पानी को समंदर में छोड़ने के बजाए उसे भाप बनाकर उड़ा दे. जुलाई में दोनों देशों ने टोक्यो को इस बारे में एक कागजात भी भेजा. जापान सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि वायुमंडल में छोड़े गए रेडियोधर्मी पदार्थ का असर आंकना बहुत मुश्किल है. चीन, जापान के सी-फूड का सबसे बड़ा खरीदार है.

फुकुशिमा के मछुआरे भी लंबे समय से रिएक्टरों का पानी समंदर में छोड़ने का विरोध करते रहे हैं. हालांकि अब वे सरकार की योजना से सहमत होते दिख रहे हैं. जापान की "नेशनल फेडरेशन ऑफ फिशरीज कोऑपरेटिव एसोसिएशन" के प्रमुख मासानोबू साकामोटो के मुताबिक, वह जानते हैं कि छोड़ा जाने वाला पानी वैज्ञानिक मानकों पर खरा उतरता है. हालांकि आम लोगों की आशंका को यह कैसे दूर करेगा, इसका जवाब उनके पास भी नहीं है.

ओएसजे/एसएम (रॉयटर्स)