नयी दिल्ली, दो जनवरी कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के बाद 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था में पुनरुद्धार हुआ है जो आगामी तिमाहियों में और बेहतर होगा। हालांकि, अर्थव्यवस्था के समक्ष भू-राजनीतिक तनाव, डॉलर की मजबूती और ऊंची मुद्रास्फीति जैसे जोखिम भी हैं।
वृद्धि के सकारात्मक रुझान और बुनियादी गतिविधियों में सुधार आने से देश को वैश्विक स्तर की उन प्रतिकूल परिस्थतियों का सामना करने में मदद मिलेगी जिनका आने वाले महीनों में भारत के निर्यात पर बुरा प्रभाव हो सकता है।
नए साल में सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के सामने मुद्रास्फीति को काबू में करने, डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट को थामने और निजी निवेश एवं वृद्धि को बढ़ावा देने जैसी चुनौतियां हैं। उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि भारत तेजी से वृद्धि करने वाली दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहे।
वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में भारत की वृद्धि दर 9.7 प्रतिशत रही। इस अवधि में इंडोनेशिया की वृद्धि दर 5.6 फीसदी, ब्रिटेन की 3.4 फीसदी, मेक्सिको की 3.3 फीसदी, यूरो मुद्रा के चलन वाले क्षेत्रों की 3.2 फीसदी, फ्रांस की 2.5 फीसदी, चीन की 2.2 फीसदी, अमेरिका की 1.8 फीसदी और जापान की वृद्धि दर 1.7 फीसदी रही है।
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एवं जानेमाने अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने कहा, ‘‘अगले वर्ष सात प्रतिशत की वृद्धि दर कायम रहनी चाहिए, यह मानते हुए कि आगामी बजट में कुछ ऐसा नहीं होगा जिसका नकारात्मक असर पड़े।’’
अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी समस्या लगातार ऊंचे स्तर पर बनी मुद्रास्फीति है जो लगभग पूरे साल रिजर्व बैंक की संतोषजनक सीमा से ऊपर बनी रही। यहां तक कि केंद्रीय बैंक को केंद्र सरकार को यह रिपोर्ट भी देनी पड़ी कि वह मुद्रास्फीति पर काबू करने में क्यों विफल रहा।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट भी नीति निर्माताओं के लिए परेशानी का सबब रहा जिससे आयात महंगा हुआ जिसके परिणामस्वरूप देश का चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़ गया। विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले महीनों में भी रुपये पर दबाव बना रहेगा।
विश्वस्तर पर बनी प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से निर्यात पर भी असर पड़ा और 2023 में भी राहत मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे जिसकी वजह पश्चिमी देशों के अहम बाजारों में मंदी और रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से उत्पन्न भूराजनीतिक संकट है।
इसके अलावा 2022 के बाद के महीनों में प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नौकरियों में भी कटौती हुई हालांकि नए साल में दूरसंचार और सेवा क्षेत्रों में भर्तियों में तेजी आने की उम्मीद है।
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स में सॉवेरन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने कहा कि बाजार मूल्य पर जीडीपी में तेज वृद्धि और राजस्व में बढ़ोतरी का भारत को लाभ मिल रहा है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर नरमी, ऊंची ब्याज दरें तथा मुद्रास्फीति जैसे जोखिम भी भारत के सामने हैं।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)