नयी दिल्ली, एक अगस्त उच्चतम न्यायालय ने रेलवे में कुछ कर्मचारियों की फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति पर बृहस्पतिवार को आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कि दस्तावेजों की उचित जांच और सत्यापन के बिना किसी को सरकारी नौकरी पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भारत के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक रेलवे में ऐसे मामलों की जांच होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ पूर्व रेलवे में अनुकंपा के आधार पर नियुक्त कुछ कर्मचारियों की सेवा समाप्ति से संबंधित मामले पर सुनवाई कर रही थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्हें बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उनकी नियुक्ति जाली और फर्जी दस्तावेजों पर आधारित पाई गई।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, "इस मामले के तथ्यों को देखते हुए, हम अपीलकर्ता-नियोक्ता की कार्रवाइयों पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं, जिन्हें प्रतिवादी-कर्मचारियों को संदिग्ध दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त किया था, जिन्हें बाद में जाली, मनगढ़ंत और फर्जी पाया गया।"
पीठ ने कहा, "दस्तावेजों की उचित जांच और सत्यापन के बिना किसी को सरकारी नौकरी पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है? रेलवे को देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक माना जाता है और इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए।"
पीठ कलकत्ता उच्च न्यायालय के अगस्त 2012 के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र की अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, कलकत्ता पीठ द्वारा पारित आदेश को पलट दिया गया था।
इन कर्मचारियों ने बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया था।
न्यायाधिकरण ने उनके आवेदनों को खारिज कर दिया था जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रेलवे ने इन कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करके पूछा था कि अनुकंपा के आधार पर उनकी नियुक्ति क्यों न समाप्त की जाए, क्योंकि उन्होंने अपने पिता की नौकरी के संबंध में जाली और मनगढ़ंत दस्तावेजों का उपयोग करके नियुक्ति ली थी।
न्यायालय ने कहा कि उनके जवाब मिलने के बाद, प्राधिकार ने यह पाते हुए उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं कि उनकी नियुक्तियां जाली, मनगढ़ंत और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर की गई थीं।
पीठ ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का सिद्धांत परिवार के कमाने वाले सदस्य की अचानक मृत्यु के बाद होने वाली पीड़ा को कम करने के लिए लागू किया गया है।
पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण और प्राधिकार ने स्पष्ट रूप से पाया है कि कर्मचारियों ने अपने दावे को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया था और जाली और फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।
पीठ ने कहा कि इन कर्मचारियों ने, हर चरण में, अपनी कथित अनुचित और अवैध नियुक्तियों के निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
पीठ ने कहा कि जब यह पता चला कि उन्होंने जाली और मनगढ़ंत दस्तावेजों के आधार पर नियुक्तियां हासिल की थीं, तो दिसंबर 2005 में उनके खिलाफ एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी।
पीठ ने कहा, "अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति उन व्यक्तियों को दी जाती है जिनके परिवार मुख्य कमाने वाले के अक्षम होने या निधन के कारण बहुत परेशान या बेसहारा हो जाते हैं। इसलिए जब ऐसे आधार पर नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति अपनी पात्रता को गलत तरीके से साबित करने का प्रयास करते हैं, जैसा कि इस मामले में किया गया है, तो ऐसे पदों को बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"
अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया और न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को बहाल किया।
पीठ ने कहा, "प्रतिवादी-कर्मचारियों को अपीलकर्ता-नियोक्ता द्वारा सेवा से बर्खास्त करना सही था।"
साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियां केवल सेवा से बर्खास्तगी के संबंध में थीं और संबंधित अदालत में उनके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही पर इसका कोई असर नहीं होगा।
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