देश की खबरें | बाल अधिकार आयोग में नियुक्तियां कैसे होती हैं, निर्धारित योग्यताएं क्या हैं: केरल उच्च न्यायालय ने पूछा

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एजेंसी न्यूज Bhasha|
देश की खबरें | बाल अधिकार आयोग में नियुक्तियां कैसे होती हैं, निर्धारित योग्यताएं क्या हैं: केरल उच्च न्यायालय ने पूछा

कोच्चि (केरल), 30 दिसंबर केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग में नियुक्तियों के तरीके और इसके लिए निर्धारित योग्यता के बारे में जानकारी मांगी है।

उच्च न्यायालय ने यह सवाल आयोग के उस आदेश के संबंध में किया है जिसमें दंपति के बीच चल रहे वैवाहिक विवाद में पति की शिकायत पर एक महिला का मानसिक उपचार करने का निर्देश दिया गया है।

अदालत ने कहा कि आयोग ने ‘‘मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 से पूरी तरह बेखबर होकर यह काम किया’’ क्योंकि जिला बाल संरक्षण अधिकारी (डीसीपीओ) की राय के आधार महिला के मनोरोग उपचार का निर्देश देना उसके ‘‘अधिकार क्षेत्र में नहीं आता’’।

अदालत ने सवाल किया कि डीसीपीओ यह तय करने के लिए कैसे सक्षम थे कि महिला को मनोरोग संबंधी अवलोकन और उपचार की आवश्यकता है या नहीं। अदालत ने कहा कि यह ‘‘भयावह’’ है कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने डीसीपीओ को मानसिक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना उचित समझा।

अदालत ने यह भी कहा कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने महिला को मनोरोग अस्पताल में भर्ती करने के लिए व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी , जो न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता था। अदालत ने कहा, ‘‘पूरी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि आयोग ने अधिकार क्षेत्र के बिना काम किया, जिससे न केवल बच्चों बल्कि मां को भी अनुचित कठिनाई का सामना करना पड़ा।’’

अदालत ने राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ सरकारी वकील से पूछा कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग में नियुक्तियां किस तरीके से की जाती हैं, जो बच्चों, उनके अधिकारों और ऐसे बच्चों का संरक्षण पाने वाले व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित है और कहा कि उपयुक्त अधिकारी को विशेष रूप से नियुक्तियों के लिए निर्धारित योग्यताओं पर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाए।

उच्च न्यायालय ने महिला के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर यह आदेश दिया। इस याचिका में पुलिस को मानसिक अस्पताल में भर्ती उनकी बेटी और दामाद के पास मौजूद नातियों को अदालत में पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

अदालत ने कोडुंगल्लूर के थाना प्रभारी को ‘‘मामले में की गई जांच की प्रगति को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया, जिसे माता की शिकायत पर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।’’

महिला के पिता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि शादी के बाद से ही दंपति के बीच वैवाहिक कलह चल रही थी और बाद में बच्चे पैदा होने के बाद उनकी बेटी को ससुराल से बेदखल कर दिया गया। इसके बाद, उनकी बेटी अपने बच्चों के साथ किराये के मकान में रह रही थी और जब उसके पति ने फिर से उन्हें परेशान करना शुरू किया, तो उसने तलाक के लिए आवेदन दायर किया।

इसने आगे कहा कि तलाक के आवेदन पर प्रतिशोध में आकर व्यक्ति ने अपनी पत्नी को एक मानसिक रोगी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया और उसे एक मनोरोगी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क किया।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया, हालांकि, जब यह प्रयास असफल रहा तो व्यक्ति ने बाल अधिकार आयोग का रुख किया, जिसने डीसीपीओ द्वारा दी गई मानसिक स्थिति रिपोर href="javascript:void(0);" onclick="shareOpen('https://twitter.com/intent/tweet?url=https%3A%2F%2Fhindi.latestly.com%2Fagency-news%2Fhow-are-the-appointments-in-child-rights-commission-what-are-the-prescribed-qualifications-kerala-high-court-askedr-1151163.html&text=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6+%E0%A4%95%E0%A5%80+%E0%A4%96%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82+%7C+%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2+%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0+%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82+%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87+%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%80+%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82%2C+%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4+%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82+%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE+%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82%3A+%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B2+%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A+%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF+%E0%A4%A8%E0%A5%87+%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%9B%E0%A4%BE&via=LatestlyHindi ', 650, 420);" title="Share on Twitter">

एजेंसी न्यूज Bhasha|
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कोच्चि (केरल), 30 दिसंबर केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग में नियुक्तियों के तरीके और इसके लिए निर्धारित योग्यता के बारे में जानकारी मांगी है।

उच्च न्यायालय ने यह सवाल आयोग के उस आदेश के संबंध में किया है जिसमें दंपति के बीच चल रहे वैवाहिक विवाद में पति की शिकायत पर एक महिला का मानसिक उपचार करने का निर्देश दिया गया है।

अदालत ने कहा कि आयोग ने ‘‘मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 से पूरी तरह बेखबर होकर यह काम किया’’ क्योंकि जिला बाल संरक्षण अधिकारी (डीसीपीओ) की राय के आधार महिला के मनोरोग उपचार का निर्देश देना उसके ‘‘अधिकार क्षेत्र में नहीं आता’’।

अदालत ने सवाल किया कि डीसीपीओ यह तय करने के लिए कैसे सक्षम थे कि महिला को मनोरोग संबंधी अवलोकन और उपचार की आवश्यकता है या नहीं। अदालत ने कहा कि यह ‘‘भयावह’’ है कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने डीसीपीओ को मानसिक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना उचित समझा।

अदालत ने यह भी कहा कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने महिला को मनोरोग अस्पताल में भर्ती करने के लिए व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी , जो न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता था। अदालत ने कहा, ‘‘पूरी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि आयोग ने अधिकार क्षेत्र के बिना काम किया, जिससे न केवल बच्चों बल्कि मां को भी अनुचित कठिनाई का सामना करना पड़ा।’’

अदालत ने राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ सरकारी वकील से पूछा कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग में नियुक्तियां किस तरीके से की जाती हैं, जो बच्चों, उनके अधिकारों और ऐसे बच्चों का संरक्षण पाने वाले व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित है और कहा कि उपयुक्त अधिकारी को विशेष रूप से नियुक्तियों के लिए निर्धारित योग्यताओं पर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाए।

उच्च न्यायालय ने महिला के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर यह आदेश दिया। इस याचिका में पुलिस को मानसिक अस्पताल में भर्ती उनकी बेटी और दामाद के पास मौजूद नातियों को अदालत में पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

अदालत ने कोडुंगल्लूर के थाना प्रभारी को ‘‘मामले में की गई जांच की प्रगति को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया, जिसे माता की शिकायत पर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।’’

महिला के पिता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि शादी के बाद से ही दंपति के बीच वैवाहिक कलह चल रही थी और बाद में बच्चे पैदा होने के बाद उनकी बेटी को ससुराल से बेदखल कर दिया गया। इसके बाद, उनकी बेटी अपने बच्चों के साथ किराये के मकान में रह रही थी और जब उसके पति ने फिर से उन्हें परेशान करना शुरू किया, तो उसने तलाक के लिए आवेदन दायर किया।

इसने आगे कहा कि तलाक के आवेदन पर प्रतिशोध में आकर व्यक्ति ने अपनी पत्नी को एक मानसिक रोगी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया और उसे एक मनोरोगी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क किया।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया, हालांकि, जब यह प्रयास असफल रहा तो व्यक्ति ने बाल अधिकार आयोग का रुख किया, जिसने डीसीपीओ द्वारा दी गई मानसिक स्थिति रिपोर्ट के आधार पर उसके पक्ष में आदेश पारित किया। अदालत में महिला के दोनों बच्चों ने बताया कि उनकी मां को कोई मानसिक बीमारी नहीं है और वह उनका बहुत ख्याल रखती है तथा वे अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहते।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

्ट के आधार पर उसके पक्ष में आदेश पारित किया। अदालत में महिला के दोनों बच्चों ने बताया कि उनकी मां को कोई मानसिक बीमारी नहीं है और वह उनका बहुत ख्याल रखती है तथा वे अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहते।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

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