प्रयागराज (उप्र), तीन जनवरी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भड़काऊ भाषण देने के मामले में संभल के सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि इस अपराध में सात वर्ष तक की ही सजा का प्रावधान है तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा अरुणेश कुमार के मामले में जारी किये गये दिशानिर्देशों के मुताबिक, याचिकाकर्ता की नियमित गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
इस रिट याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने कहा, “हमने प्राथमिकी देखी जिसमें प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ संज्ञेय अपराध उजागर किया गया है, इसलिए प्राथमिकी रद्द करने की प्रार्थना पर विचार नहीं किया जा सकता। हमारा मत है कि इसमें कोई हस्तक्षेप वांछित नहीं है।”
उच्च न्यायालय ने कहा, “हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि उक्त प्राथमिकी में जिन अपराधों की शिकायत की गई है, उनमें सात साल तक की सजा का प्रावधान है, इसलिए याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के मामले में निर्देश दिया जाता है कि प्रतिवादी यह सुनिश्चित करेंगे कि बीएनएसएस की धारा 35 और उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन किया जाए।”
संभल के सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की थी।
संभल में मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद का अदालत के आदेश पर सर्वे के विरोध प्रदर्शन के दौरान 24 नवंबर को हिंसा भड़क गई थी और इस संबंध में सपा सांसद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
पुलिस का आरोप है कि सांसद के भड़काऊ भाषण के कारण यह हिंसा भड़की थी जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग घायल हो गए थे।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील इमरान उल्लाह ने दलील दी कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि घटना स्थल पर वह मौजूद नहीं थे, फिर भी प्राथमिकी में आरोपी के तौर पर उन्हें नामजद किया गया।
उन्होंने दलील दी कि जिन अपराधों का सांसद पर आरोप है, उन सभी में सात साल तक की सजा का प्रावधान है, इसलिए गिरफ्तारी करने से पहले बीएनएनएस की धारा 35 के विशेष प्रावधानों का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित होना चाहिए।
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