नयी दिल्ली, 30 जून कानूनी विशेषज्ञों ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि के जेल में बंद मंत्री वी सेंथिल बालाजी को मंत्रिपरिषद से एकतरफा तरीके से बर्खास्त करने के अभूतपूर्व आदेश पर शुक्रवार को आश्चर्य व्यक्त किया।
राज्यपाल ने, हालांकि बढ़ती आलोचनाओं के कुछ घंटों बाद अपने इस निर्णय को स्थगित कर दिया।
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘राज्यपाल के पास किसी मंत्री को एकतरफा बर्खास्त करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। वह कैसे तय कर सकते हैं कि कैबिनेट में कौन होना चाहिए और कौन नहीं होना चाहिए? उन्हें मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत सिन्हा ने कहा कि राज्यपाल द्वारा एकतरफा कार्रवाई करना और एक मंत्री को बर्खास्त करना उचित नहीं है।
सिन्हा ने कहा, ‘‘उनके लिए एकतरफा निर्णय लेना उचित नहीं था। यह 1994 के (एसआर) बोम्मई मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ का एक स्थापित कानून है। अधिक से अधिक, वह मुख्यमंत्री को इसके खिलाफ कार्रवाई करने का सुझाव दे सकते हैं, लेकिन राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है। अंततः, राज्यपाल के नाम पर ही बर्खास्तगी का निर्णय लिया जाएगा, लेकिन वह एकतरफा कार्य नहीं कर सकते हैं।’’
शीर्ष अदालत की नौ-सदस्यीय संविधान पीठ ने मार्च 1994 में अनुच्छेद 356 और केंद्र सरकारों द्वारा इसके मनमाने ढंग से इस्तेमाल के संबंध में ‘एसआर बोम्मई’ मामले में एक ऐतिहासिक फैसला दिया था।
नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा कि ‘शमशेर सिंह’ मामले में उच्चतम न्यायालय के 1974 के फैसले के बाद राज्यपाल ऐसे मामलों में अपने दम पर कार्रवाई नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा, ‘‘शमशेर सिंह मामला राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित है। शासन की पश्चिमी प्रणाली में राष्ट्रपति और गवर्नर के पास बहुत सीमित शक्तियों को छोड़कर कोई व्यक्तिगत विवेकाधीन शक्तियां नहीं हैं। बल्कि वह पूरी तरह से मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उनके पास किसी मंत्री को हटाने की स्वतंत्र शक्ति नहीं है। अन्यथा, पूरा संघीय ढांचा गिर जाएगा, क्योंकि अगर राज्यपाल के पास यह शक्ति होती है तो कल वह कह सकते हैं कि वह पूरी सरकार को बर्खास्त कर देंगे।’’
एसआर बोम्मई मामले में कहा गया था कि राज्यपाल को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए और राज्य के प्रमुख के तौर पर अपनी दोहरी अविभाजित क्षमता में उन्हें निष्पक्ष रूप से राष्ट्रपति की सहायता करनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था, ‘‘संवैधानिक संकट के समय में राज्य सरकार के संवैधानिक प्रमुख के रूप में उन्हें संयम बरतना चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने 2020 में ‘शिवराज सिंह चौहान बनाम मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष’ मामले में अपने फैसले में कहा था, ‘‘राज्यपाल को जो शक्तियां सौंपी गई हैं, उनका इस्तेमाल आमतौर पर अनुच्छेद 163(1) के प्रावधानों की शर्तों के अनुसार मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के आधार पर किया जाता है।’’
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