दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में लाखों लोग जबरन मजदूर बनाए गए. उनमें से बहुत सारे मजदूरों का क्या हुआ, ये अभी भी रहस्य है. जवाब की तलाश में बेलारुस से एक युवती बर्लिन में है.हाना एस, उस समय आठ साल की थीं जब उनकी नानी की बहन की मौत हुई. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई इस मौत की वजह समझ पाने लायक वह तब नहीं थी. उनकी नानी को नाजियोंने जबरन मजदूरी में धकेल दिया था. उनके साथ और भी 13 लाख लोग थे- आदमी, औरतें, और बच्चे. उनमें से बहुत से लोगों को नाजियों के कब्जे वाले देशों से अपहरण कर, बेगारी के लिए जर्मनी लाया गया था. हाना एस कहती हैं, "मुझे बस कुछ संयोग से ही अपनी उन नानी के बारे में पता चला. बेलारूस से आई हाना अपना पूरा नाम प्रकाशित नहीं कराना चाहती थीं. डीडब्लू ने उनसे बर्लिन में मुलाकात की जहां वह अपनी गर्मियों की छुट्टियों के बीच नाजी दौर में बेगारी पर चल रहे एक सेमिनार में हिस्सा ले रही हैं. वह बताती हैं, "मेरा परिवार इस बारे में ज्यादा बात नहीं करता, मुझे लगता है कि ये वाकई शर्म की बात है."
इसीलिए मजदूरी करने वाली नानी के बारे में हाना के पास बहुत ही कम सूचना है. "मेरी फैमिली हिस्ट्री में वो एक गैप है."उन्हें सिर्फ इतना पता है कि वो नानी ब्रेड सेकती थीं. लेकिन हाना को उम्मीद है कि एक रोज वो और भी कुछ जान पाएंगी. इसीलिए वो बर्लिन आई हैं जहां स्प्री नदी के किनारे दक्षिणपूर्व में नाजी फोर्स्ड लेबर डॉक्युमेंटेशन सेंटर स्थित है. इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले अन्य लोगों के साथ, वह एक दस दिवसीय सेमिनार में भी हिस्सा ले रही हैं जिसे एक्शन रिकन्सीलिएशन सर्विस फॉर पीस ने आयोजित किया है. सेमिनार में नाजी दौर के जबरन श्रम के बारे में हाना विस्तारपूर्वक समझ पा रही हैं. सेमिनार में शामिल प्रतिभागियों में से पांच लोग बेलारुस से आए हैं. 30 साल की शिक्षिका हाना ने बताया, "ये विषय मुझे उत्तेजित करता है, लेकिन भावनात्मक तौर पर थका भी देता है. आगे चलकर वो आर्काइव्स में अपनी खुद की रिसर्च जारी रखना चाहती हैं.
बैरकों में रिहाइश
इस बारे में बात करते हुए हाना उन बैरकों की उजाड़, ठंडी दीवारों को देखती हैं जहां वह मजदूर, नाजी दौर में रहा करते थे. ये उस शिविर का हिस्सा था जो 1943 में बना था और आज नाजी फोर्स्ड लेबर डॉक्युमंटेशन सेंटर के परिसर में स्थित एक प्रामाणिक स्मारक है. खिड़की के सामने पेड़ उस समय भी मौजूद था. इसी तरह वे इमारतें भी, जहां से आसपास के घरों के लोग लेबर कैंप को देख सकते थे और ये भी देखते थे कि कैसे मजदूर सुबह सवेरे नजदीकीफैक्ट्रियों तक पैदल ले जाए जाते थे और शामों को लौटते थे. बैरकों की बदहाली का अंदाजा लगाना आसान है. ठुंसी हुई जगहें, तीखी ठंड, और हाइजीन की विपरीत भयानक स्थितियां, जिन्हें बाद मे चश्मदीदों ने दर्ज भी कराया था. कोई प्राइवेसी नहीं थी. यहां तक कि गलियारे के अंत में बने पाखाने में भी नहीं.
उस समय जर्मन राइष की राजधानी रही बर्लिन में इन मजदूरों के बड़े व्यापक इस्तेमाल के मामलों को दर्ज किया है. यह न सिर्फ नेशनल सोशलिस्टों के लिए सत्ता का केंद्र था बल्कि बड़े हथियारों और उद्योगों का ठिकाना भी था. इन उद्योगों को कामगारो की सख्त जरूरत पड़ती थी, खासतौर पर उस स्थिति में जब कई जर्मन पुरुष, लड़ाई के मोर्चे पर होने की वजह से उपलब्ध नहीं थे. अकेले बर्लिन में करीब पांच लाख स्त्री, पुरुष और बच्चे काम पर झोंक दिए गए थे. नाजी फोर्स्ड लेबर डॉक्युमेंटेशन सेंटर में शोध संचालक, इतिहासकार रोलांड बोरचर्स कहते हैं, "बंधुआ मजदूर बर्लिन में हर कहीं मौजूद थे. हर कोने में एक कैंप हुआ करता था." आज के बर्लिन में उन चीजों की जरा भी निशानियांनहीं रह गई हैं.
बढ़ता हुआ डाटाबेस
इतिहासकारों का अनुमान है कि बर्लिन में करीब 3000 श्रम शिविर थे. बुनियादी बैरकों के अलावा गोदाम, एटिक और निजी मकान भी सामूहिक रिहाइश के काम आते थे. करीब 2000 शिविर, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध एक डाटाबेस में पहले से दर्ज हैं. बोचर्स उसमें नियमित रूप से जानकारी जोड़ते रहते हैं. "नये नये शिविरों का पता चलता रहता है." नाजी दौर में कोई भी कंपनी बेगारी की मांग कर सकती थी- इनमें बड़े हथियार बनाने वाली फैक्ट्रियां भी थीं और कोनों में मौजूद बेकरियां भी. बोचर्स बताते हैं, "कंपनियों को रोजगार कार्यालय जाना होता था, अपनी जरूरत बतानी पड़ती थी और इस बात की ठोस वजह देनी पड़ती थी कि उनका बिजनेस महत्वपूर्ण क्यों है. फिर एक बंधुआ मजदूर उनके नाम कर दिया जाता था."
दूसरे विश्व युद्ध के बाद लंबे समय तक, नाजी दौर में बंधुआ मजदूरी के विषय पर बहुत कम गौर किया गया. 1980 के दशक के मध्य में इस मामले पर ध्यान देने का सिलसिला शुरू हुआ और ये काम आज भी जारी है. बोचर्स कहते हैं कि कुछ पहलुओं को अभी भी ठीक से खंगाला नहीं गया है. पीड़ितों के नजरियों और अनुभवों के बारे में बहुत ज्यादा मालूमात नहीं है. कई परिवारों में इस बारे में ज्यादा बात नहीं होती है, जैसा कि हाना ने भी महसूस किया था, शर्म संकोच या दूसरे कारणों से. इसीलिए वो मानती हैं कि नाजी दौर की बंधुआ मजदूरी के बारे में और जानकारी जुटाना उनके लिए और ज्यादा जरूरी हो गया है, "ताकि वैसी क्रूरताएं भविष्य में कभी न दोहराई जाएं."