देहरादून, 13 दिसंबर उत्तराखंड के देहरादून में जारी 10वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में विदेशी प्रतिनिधियों ने वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद की वकालत के लिए शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना की। साथ ही प्रतिनिधियों ने आयुर्वेद की व्यापक मान्यता सुनिश्चित करने के लिए सरकारों के बीच अधिक प्रयासों का आह्वान किया।
ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, पुर्तगाल, पोलैंड, अर्जेंटीना और ब्राजील के प्रतिनिधियों ने चार दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा (आईडीए) में प्रस्तुति देते हुए अपने-अपने देशों में आयुर्वेद की बढ़ती मांग पर प्रकाश डाला।
उन्होंने आयुर्वेद के विकास में नियामक और अन्य बाधाओं के बारे में विस्तार से बताया और ऐसे तरीके सुझाए, जिनसे सरकार और विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के आयोजक विश्व आयुर्वेद फाउंडेशन उनसे पार पाने में मदद कर सकते हैं।
सभा में विभिन्न देशों के करीब 300 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने सभा का उदघाटन करते हुए कहा कि मंत्रालय विश्व भर में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के सभी प्रयासों का समर्थन करता है।
उन्होंने कहा कि पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों की वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए 25 करोड़ डॉलर के निवेश से 2022 में गुजरात के जामनगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर (जीटीएमसी) की स्थापना की गई है।
कोटेचा ने दुनिया भर के आयुर्वेद हितधारकों से बाधाओं को दूर करने के लिए जीटीएमसी और आयुष मंत्रालय के साथ काम करने का आग्रह किया।
वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी में एनआईसीएम हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. दिलीप घोष ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में आयुर्वेद का 6.2 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार है जबकि वहां की आबादी केवल 1.9 करोड़ है।
उन्होंने कहा कि मीडिया के कुछ वर्ग आयुर्वेद के खिलाफ लामबंद दिखाई पड़ते हैं, खासकर तब-जब हाल ही में यूरोप में कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों पर प्रतिबंध लगने जैसी नकारात्मक खबरें सामने आने के बावजूद यह वृद्धि हुई है।
दक्षिण अमेरिकी देश में योग और आयुर्वेद आंदोलन के अध्यक्ष डॉ. जोस रूग ने कहा कि ब्राजील में 4,000 आयुर्वेद चिकित्सक हैं और कानून उन्हें ‘थेरेपिस्ट’ मानता है।
उन्होंने कहा कि रियो डि जेनेरियो में आयुर्वेद के तीन केंद्र हैं और बढ़ती मांग को देखते हुए ऐसे और केंद्रों की जरूरत है।
हालांकि, जर्मनी में आयुर्वेद उपचार और उत्पादों की शुरुआत करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाली डॉ. हर्षा ग्रैमिंगर ने कहा कि जर्मनी में आयुर्वेद का दृश्य बिल्कुल अलग है।
उन्होंने कहा कि वह एक ऐसे अस्पताल में काम करती हैं जहां आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों में समन्वित उपचार किया जाता है।
उन्होंने कहा, “हमारे पास बहुत अच्छे शैक्षणिक संस्थान हैं और हमने (आयुर्वेद में) बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। मैं चाहती हूं कि हर अस्पताल में आयुर्वेद होना चाहिए, जहां सिर्फ खाद्य उत्पाद ही नहीं बल्कि दवाइयां भी उपलब्ध हों।”
नेपाल और श्रीलंका के प्रतिनिधि भी अपने देशों में आयुर्वेद की वृद्धि को देखकर प्रसन्न हैं।
श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय में सलाहकार एमजी सजीवनी ने कहा कि छह विश्वविद्यालय-संबद्ध संस्थान हैं, जो आयुर्वेद में उपाधि पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।
नेपाल के स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय में आयुर्वेद और वैकल्पिक चिकित्सा के प्रमुख डॉ. पुष्प राज पौडेल ने बताया कि उनके देश में दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी फार्मेसी है, जो करीब तीन सदी पुरानी है।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद स्वास्थ्यसेवा प्रणाली अच्छी तरह से विकसित है और समाज द्वारा व्यापक रूप से स्वीकृत है।
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