मुंबई, चार दिसंबर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अंशकालिक सदस्य नीलेश शाह ने बुधवार को कहा कि नीति निर्माण में खाद्य मुद्रास्फीति को शामिल किया जाए या नहीं, इस पर बहस एक जटिल मुद्दा है। उन्होंने सवाल किया कि क्या हम संख्या की सही गणना कर रहे हैं।
शाह कोटक म्यूचुअल फंड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी भी हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या संख्या पर पहुंचते समय गणना में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 80 करोड़ से अधिक भारतीयों को मुफ्त भोजन को ध्यान में रखा जाता है।
उन्होंने कहा कि 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त या सब्सिडी वाले खाद्यान्न से मुख्य संख्या में गिरावट आएगी।
शाह ने यह स्पष्ट किया कि ईएसी-पीएम ने अभी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श नहीं किया है।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि आरबीआई को दिए गए 2-6 प्रतिशत मुद्रास्फीति के दायरे में भी बदलाव करना होगा।
उन्होंने यहां कोटक एमएफ के एक कार्यक्रम में कहा, ''मेरा एकमात्र निवेदन यह होगा कि क्या हम खाद्य मुद्रास्फीति को सही तरीके से माप रहे हैं? उदाहरण के लिए, 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त भोजन दिया जाता है। यह लागत हमारे राजकोषीय घाटे से अधिक है। क्या इसका श्रेय खाद्य मुद्रास्फीति को जाता है?''
शाह ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति का मुद्दा बहुत जटिल है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने जुलाई में नीति निर्माण से खाद्य मुद्रास्फीति को बाहर रखने की वकालत की थी, जिससे नीतिगत हलकों में तीखी बहस छिड़ गई और आरबीआई ने इस तरह के किसी भी कदम का विरोध किया।
शाह ने कहा कि विभिन्न देशों की अलग-अलग प्रथाएं हैं, और अमेरिका केवल मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति के आधार पर काम करता है, क्योंकि विकसित अर्थव्यवस्था में खानपान पर अपेक्षाकृत बहुत कम खर्च होता है।
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