शिमला, 11 जनवरी हिमाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और नौ अन्य पुलिस अधिकारियों को राहत देते हुए उच्च न्यायालय ने उस प्राथमिकी को रद्द कर दिया है, जिसमें उन पर एक दलित कांस्टेबल को परेशान करने और उसे ‘मनगढ़ंत आरोपों’ के आधार पर सेवा से बर्खास्त करने का आरोप लगाया गया था।
पुलिस अधिकारियों--अंजुम आरा, दिवाकर शर्मा और अन्य आरोपियों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की एकल पीठ ने शुक्रवार को कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोपों के संबंध में जांच एजेंसी को कुछ भी नहीं मिला है।
बर्खास्त कांस्टेबल धरम सुख नेगी की पत्नी मीना नेगी ने उनके विरूद्ध अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम की धारा 31(1) (बी) के तहत प्राथमिकी दर्ज करायी थी। धरम सुख नेगी किन्नौर जिले के रहने वाले हैं।
अपनी शिकायत में मीना ने आरोप लगाया था कि उनके पति को प्रताड़ित किया गया और नौ जुलाई, 2020 को ‘मनगढ़ंत आरोपों’ के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया, जबकि उनकी सेवा के आठ साल बाकी थे । मीना ने यह भी कहा था कि सरकारी आवास में रहने के लिए उनसे 1.4 लाख रुपये से अधिक रकम की वसूली का आदेश भी दिया गया था।
उच्च न्यायालय का आदेश शनिवार को उपलब्ध कराया गया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता अपराध के साथ याचिकाकर्ताओं का संबंध स्थापित नहीं कर पायी।
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