श्रीनगर, 29 दिसंबर राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने और पिछले साल तत्कालीन राज्य के पुनर्गठन के बाद जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों के साथ 2020 के अंत में जम्मू कश्मीर में एक बार फिर चुनावों और राजनीतिक गतिविधियों की बहाली देखने को मिली।
केंद्र द्वारा 2019 में किये गए एक अहम संविधान संशोधन के बाद वर्ष 2020 की शुरुआत कुछ अनिश्चितताओं के साथ हुई थी जब प्रदेश में मुख्यधारा के अधिकतर राजनेता हिरासत में ही थे।
राज्य के कुछ नेता जहां पहले दो महीनों में ही छूट गए – कथित तौर पर अनुच्छेद 370 के खिलाफ नहीं बोलने के बॉण्ड पर दस्तखत के बाद- तो वहीं कोरोना वायरस महामारी की आमद के चलते मार्च में फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला समेत कई अन्य को छोड़ दिया गया।
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती हालांकि सबसे ज्यादा समय -14 महीने - तक कैद में रहीं और उन्हें डीडीसी चुनावों से ठीक पहले अक्टूबर में रिहा किया गया।
इस साल कोविड-19 से निपटने में प्रशासन का समय और संसाधन दोनों खूब लगे। इस महामारी से केंद्र शासित प्रदेश में 1.19 लाख लोग संक्रमित हुए तो वहीं करीब 1900 लोगों की जान चली गई।
भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों ने मुख्यधारा के नेताओं के खिलाफ अपनी जांच तेज की और जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने फारुख अब्दुल्ला की 11.86 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति कुर्क कर दी जबकि युवा पीडीपी नेता वहीद पारा को आतंकियों से कथित संबंध के चलते सलाखों के पीछे जाना पड़ा।
पारा ने हालांकि डीडीसी चुनावों में जीत हासिल करते हुए अपने निकटतम भाजपा उम्मीदवार को बड़े अंतर से शिकस्त दी।
अनुच्छेद 370 को रद्द किये जाने के 16 महीने बीतने के बाद भी जम्मू कश्मीर के अधिकतर हिस्सों में मोबाइल उपकरणों पर हाई-स्पीड इंटरनेट सुविधा नहीं है क्योंकि प्रशासन अब भी यह मानता है कि इस सेवा की इजाजत देने से भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो सकता है।
प्रशासनिक मोर्चे पर भाजपा नेता मनोज सिन्हा ने गिरीश चंद्र मुर्मू की जगह उपराज्यपाल का पदभार संभाला। ऐसी अफवाह थी कि मुर्मू और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव बी वी आर सुब्रमण्यम के बीच रिश्ते सही नहीं चल रहे थे।
इन सभी चीजों के बीच डीडीसी चुनावों को राज्य के लिये 2020 का मुख्य आकर्षण कहा जा सकता है।
अंतिम नतीजों की घोषणा से कुछ घंटों पहले हालांकि विपक्षी दलों ने केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन पर भाजपा या उसके चुने हुए उम्मीदवारों को समर्थन देने के लिये निर्दलीयों को लुभाने की कोशिश का आरोप लगाया।
मुख्यधारा के सात राजनीतिक दलों- नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस,पीपुल्स मूवमेंट, माकपा और भाकपा- ने पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिकलरेशन (पीएजीडी) के नाम से एक गठबंधन बनाया था और फारुक अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष चुने गए।
इस गठबंधन को बनाने का मुख्य उद्देश्य जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को बहाल करने के लिये प्रयास करना था। यह गठबंधन अभी बना ही था कि डीडीसी चुनावों की घोषणा हो गई और उम्मीद थी कि पीएजीडी इसका बहिष्कार करेगा। लेकिन गठबंधन ने चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया।
नतीजे लगभग वैसे ही थे जैसी की उम्मीद की जा रही थी। पीएजीडी के खाते में 110 सीटें आईं। कश्मीर ने मुख्य रूप से पीएजीडी उम्मीदवारों के लिये मतदान किया जबकि भाजपा को 140 सीटों में से यहां सिर्फ तीन सीटें हासिल हुईं जबकि अलताफ बुखारी की अपनी पार्टी के खाते में कुछ अन्य सीटें गईं।
यह तीन सीटें हालांकि भगवा दल के लिये किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थीं क्योंकि यह घाटी में ऐसे किसी चुनाव में भाजपा की पहली जीत थी जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी हिस्सा ले रहे हों।
दूसरी तरफ जम्मू क्षेत्र के हिंदू बहुल जिलों में डोडा जिले में भाजपा को दमदार जीत मिली। वास्तव में भाजपा द्वारा जीती गई 75 सीटों में से 63 सीटें छह जिलों जम्मू, कठुआ, सांबा, उधमपुर, रेयासी और डोडा से आईं।
भाजपा का हालांकि पुंछ में खाता नहीं खुला और राजौरी, किश्तवाड़ तथा रामबन जिलों में उसे सिर्फ तीन सीटें मिलीं जो 2014 के विधानसभा चुनावों में उसके प्रदर्शन की तुलना में कम थीं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, “प्रशासन ने अब भाजपा और हाल में उसकी नवगठित सहायक के लिये निर्दलीय उम्मीदवारों को जुटाने की कोशिश की जिम्मेदारी ले ली है।”
डीडीसी चुनावों में निर्दलीय तीसरे स्थान पर रहे और वे 50 सीटों पर जीते। 75 सीटें जीतकर भाजपा पहले और 67 सीटों के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस दूसरे स्थान पर रही।
डीडीसी चुनाव देश के अन्य हिस्सों में काफी समय से चले आ रहे हैं लेकिन जम्मू कश्मीर के लोगों को पहली बार जिला स्तरीय परिषद में सीधे चुनाव का मौका मिला।
इस दौरान विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को प्रचार से रोके जाने और भाजपा और उसके सहयोगियों को तरजीह दिये जाने जैसे आरोप भी लगे।
नवगठित केंद्र शासित प्रदेश में अचानक डीडीसी चुनावों की घोषणा के लिये अधिकतर क्षेत्रीय दलों की तैयारी नहीं थी।
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