देश की खबरें | लोकतंत्र संवाद और चर्चा से पनपता है: उपराष्ट्रपति धनखड़

मुंबई, 11 जुलाई उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को यहां कहा कि लोकतंत्र संवाद और चर्चा से फूलता-फलता है, लेकिन वर्तमान में राजनीतिक दलों के बीच संवादहीनता है।

दक्षिण मुंबई स्थित विधान भवन में महाराष्ट्र विधानमंडल के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शिष्टाचार और अनुशासन “लोकतंत्र का हृदय” है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “लोकतंत्र संवाद और चर्चा से फूलता-फलता है।” उन्होंने आगे कहा कि नैतिकता और सदाचार भारत में सार्वजनिक जीवन की पहचान हैं।

धनखड़ ने कहा कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है और यह काफी दबाव में काम कर रही है।

उन्होंने कहा कि संसद की कार्यवाही को बाधित करके राजनीति को हथियार बनाना हमारी राजनीति के लिए गंभीर परिणाम लेकर आएगा।

उन्होंने कहा कि सभापति और अध्यक्ष को दोनों पक्षों द्वारा अपनी सुविधा से निशाना बनाया जा रहा है।

उपराष्ट्रपति ने संसद को “लोकतंत्र का ध्रुव तारा” और विधायकों को “प्रकाश स्तंभ” बताया। उन्होंने कहा कि विधायिकाओं में बुद्धि, हास्य और व्यंग्य ने टकराव और प्रतिकूल परिदृश्य को जन्म दिया है।

धनखड़ ने कहा, “सदस्य मुझसे मेरे कक्ष में मिलते हैं और बताते हैं कि सदन को बाधित करने के लिए उन्हें अपने राजनीतिक दल से आदेश मिला है”।

उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों से उन सदस्यों को पुरस्कृत करने की अपील की जिनका प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है न कि उन सदस्यों को जो अध्यक्ष के आसन के समक्ष आकर प्रदर्शन करते हैं।

धनखड़ ने कहा कि विधानसभाओं में बहस, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा की प्रधानता अब व्यवधान और गड़बड़ी में बदलती जा रही है।

विधायिकाओं में लोकतांत्रिक मूल्यों और संसदीय परंपराओं का कड़ाई से पालन करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हाल के संसद सत्र में जिस तरह का आचरण देखा गया वह “वास्तव में दुखद है क्योंकि यह हमारे विधायी विमर्श में महत्वपूर्ण नैतिक क्षरण को दर्शाता है।” उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट है कि वर्तमान में हमारी संसद और विधानसभाओं में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। लोकतंत्र के ये मंदिर रणनीतिक व्यवधानों और अशांति के कारण अपवित्र हो रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “पार्टियों के बीच संवादहीनता है और बातचीत का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है।”

धनखड़ ने कहा कि सौहार्द और सर्वसम्मति की जगह टकराव और विरोधात्मक रुख ने ले ली है। उन्होंने कहा कि “लोकतांत्रिक राजनीति एक नए निम्न स्तर पर पहुंच गई है और तनाव और दबाव है।” उन्होंने कहा कि सभी स्तरों पर, खासकर राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे “विस्फोटक और खतरनाक परिदृश्य” में आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, “बुद्धि, हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष, जो कभी विधानमंडलों में प्रवचन का अमृत थे, हमसे दूर होते जा रहे हैं। अब हम अक्सर टकराव और प्रतिकूल स्थिति देखते हैं।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राजनीतिक दल अपने सदस्यों में अनुशासन की गहरी भावना पैदा करें और उन सदस्यों को पुरस्कृत करें जिनका प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है बजाय उन लोगों को पुरस्कृत करने के जो भीड़ में शामिल होकर आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करते हैं।

महाराष्ट्र विधान परिषद के शताब्दी समारोह को उल्लेखनीय मील का पत्थर बताते हुए धनखड़ ने 17वीं शताब्दी के प्रतिष्ठित शासक छत्रपति शिवाजी महाराज को भी याद किया।

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