डायनासोर का खात्मा करने वाली उल्कापिंड की टक्कर से पहले एक और ज्यादा भयानक टक्कर हुई थी. लेकिन उस टक्कर ने पृथ्वी पर जीवन के विकास में मदद की.6.6 करोड़ साल पहले एक बड़ा उल्कापिंड धरती से टकराया था. इसने पृथ्वी पर भयानक तबाही मचाई थी, जिससे डायनासोर और कई अन्य जीव समाप्तहो गए थे. लेकिन धरती से टकराने वाला यह सबसे बड़ा उल्कापिंड नहीं था. वैज्ञानिकों का कहना है कि 3.26 अरब साल पहले, एक और उल्कापिंड धरती से टकराया था, जो इससे 200 गुना बड़ा था.
इस उल्कापिंड ने और भी भयंकर तबाही मचाई थी. लेकिन नए शोध में अनुमान लगाया गया है कि यह विनाश जीवन के विकास के लिए फायदेमंद रहा होगा. वैज्ञानिकों ने इस उल्कापिंड को एक "विशाल उर्वरक बम" कहा है, जिसने उस समय मौजूद बैक्टीरिया और आर्किया (प्राचीन एक-कोशीय जीव) को जरूरी पोषक तत्व जैसे फॉस्फोरस और आयरन दिए.
जब पृथ्वी पर बस पानी था
शोधकर्ताओं ने इस उल्कापिंड के प्रभाव का अध्ययन दक्षिण अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी इलाके में स्थित बार्बर्टन ग्रीनस्टोन बेल्ट की प्राचीन चट्टानों से किया. उन्हें प्राचीन कार्बनिक पदार्थों के रासायनिक संकेत और समुद्री बैक्टीरिया की चटाई जैसे जीवाश्म मिले. इससे यह पता चला कि जीवन बहुत जल्दी सामान्य स्थिति में लौट आया था.
यह अध्ययन सोमवार को 'प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' पत्रिका में प्रकाशित हुआ. इस शोध की प्रमुख लेखिका, हार्वर्ड विश्वविद्यालय की भूवैज्ञानिक नादया ड्राबॉन कहती हैं, "जैसे ही परिस्थितियां सामान्य हुईं, जीवन ने तेजी से वापसी की और यहां तक कि और ज्यादा फल-फूल गया."
यह घटना पेलियोआर्कियन युग के दौरान हुई थी. उस समय पृथ्वी एक जलमग्न दुनिया थी, जिसमें ज्वालामुखी और महाद्वीपीय चट्टानें बहुत कम थीं. वातावरण और महासागरों में ऑक्सीजन गैस नहीं थी, और न ही कोशिकीय नाभिक वाले जीव थे.
प्रलय सी थी टक्कर
उल्कापिंड कार्बन से भरपूर "कार्बोनेशियस कोंड्राइट" प्रकार का था. इसका व्यास लगभग 37-58 किलोमीटर था. यह उस उल्कापिंड से 50-200 गुना भारी था, जिसने डायनासोरों को समाप्त किया था.
ड्राबॉन ने कहा, "इस टकराव के प्रभाव बहुत ही तीव्र और विनाशकारी थे. टकराव से उल्कापिंड और जिस चट्टान से यह टकराया, वे दोनों वाष्प में बदल गए. यह वाष्प और धूल पूरे विश्व में फैल गई और कुछ ही घंटों में आसमान काला हो गया."
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह टकराव संभवतः महासागर में हुआ था, जिससे एक सुनामी आई जो पूरी दुनिया में फैल गई, इसने समुद्री तलों को उखाड़ फेंका और तटों पर बाढ़ ला दी. साथ ही, टकराव से निकली ऊर्जा ने वातावरण को इतना गर्म कर दिया कि समुद्र की ऊपरी सतह उबलने लगी.
ड्राबॉन ने बताया कि धूल को बैठने और वातावरण को ठंडा होने में कई साल या दशक लगे होंगे, ताकि पानी फिर से महासागरों में लौट सके. सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहने वाले और उथले पानी में रहने वाले सूक्ष्मजीव नष्ट हो गए होंगे.
जीवन के तत्व आए
लेकिन इस उल्कापिंड से फॉस्फोरस की एक बड़ी मात्रा धरती पर आई, जो सूक्ष्मजीवों के लिए जरूरी पोषक तत्व है. साथ ही, सुनामी ने गहरे पानी के आयरन को उथले पानी में मिला दिया, जिससे सूक्ष्मजीवों के लिए आदर्श वातावरण बना, क्योंकि आयरन से उन्हें ऊर्जा मिलती है.
ड्राबॉन ने कहा, "कल्पना करें कि ये टकराव एक विशाल उर्वरक बम की तरह थे. हम आमतौर पर उल्कापिंडों को जीवन के लिए विनाशकारी मानते हैं, जैसे कि मेक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप पर हुआ टकराव जिसने डायनासोर के साथ 60-80 फीसदी प्रजातियों का विनाश कर दिया. लेकिन 3.2 अरब साल पहले, जीवन बहुत सरल था."
ड्राबॉन बताती हैं कि सूक्ष्मजीव सरल, लचीले होते हैं और वे तेजी से प्रजनन करते हैं. टकराव के सबूतों में उल्कापिंड के रासायनिक संकेत, चट्टानों से बनी छोटी गोल संरचनाएं और समुद्र तल के टुकड़े शामिल थे, जो सुनामी के कारण तलछटी चट्टानों में मिल गए थे.
वीके/सीके (रॉयटर्स)