नयी दिल्ली, 11 दिसंबर: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस नयी जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र को जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर में हस्तक्षेप करने और कानून-व्यवस्था बहाल करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. याचिका में संकट के कारण और समाधान योग्य सुझाव पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का आग्रह भी किया गया था. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन की दलीलों पर गौर करते हुए कहा कि एक समिति पहले से ही हिंसा और अन्य पहलुओं से संबंधित मुद्दों पर विचार कर रही है.
वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘‘एक ऐसी समिति की आवश्यकता है जो सभी समुदायों को एक मंच पर ला सके.’’ पीठ ने कहा, ‘‘यह अदालत पहले ही न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर चुकी है. समिति के समक्ष आवेदन देने का विकल्प खुला है। इस चरण में हमारा मानना है कि व्यापक और सामान्य राहत से कुछ नहीं होगा.’’ इसने याचिकाकर्ताओं-युमलेम्बम सुरजीत सिंह, कीशम अरिश और लैशराम मोमो सिंह को न्यायमूर्ति गीता मित्तल समिति का रुख करने को कहा.
याचिका में कहा गया, ‘‘जनहित में यह याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की जा रही है, जिसमें मणिपुर में कानून-व्यवस्था और शांति बहाल करने के लिए केंद्र को निर्देश देने और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन करने की मांग की गई है जो समस्या के मूल कारण पर विचार करे और संभावित उपचारात्मक उपाय सुझाए.’’ शीर्ष अदालत पहले से ही राज्य में जातीय हिंसा को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है और स्थिति का जायजा लेने तथा सुधारात्मक उपाय सुझाने के लिए इसने उच्च न्यायालय की तीन पूर्व महिला न्यायाधीशों की एक समिति गठित की है. तीन मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 170 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैकड़ों अन्य घायल हुए हैं.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)